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________________ [ ४८४ ] वाले प्रत्यक्ष अज्ञानताके सचक हैं क्योंकि श्रीअभयदेवसूरिजी ( इन्हीं) महाराजने श्रीस्थानांगजी सूत्रकी वृत्तिम तथा और भी अनेक महाराजोंने श्रीमहावीर स्वामीके छ कल्याणकोंको खुलासे लिखे हैं तो तो मैने उपरमें ही अनेक शास्त्रोंके प्रमाण लिख दिखाये हैं और पांच कल्याणकोंका कारण भी उपरमें लिख दिखाया है इस लिये छ कल्याणक निषेध नहीं हो सकते हैं और श्रीपंचाशकजीके सूत्र तथा वृत्तिमें श्रीवीरप्रभुके छ कल्याणक लिखनेसे सबी तीर्थंकर महाराजो के छ छ कल्याणक ठहर जावे सो तो होते नहीं इस लिये वहां छ कल्याणक न लिखते बहुत अपेक्षासे पांच ही लिखे सो सबी तीर्थंकर महाराजोंके होते हैं इसलिये व्यवहार नयके उपरके पाठसे अनेक शास्त्रोंके प्रमाण युक्त निश्चय नय वाले छ कल्याणक निषेध नहीं हो सकते हैं और न्यायरत्नजीको शास्त्रकारों के विरुद्धार्थ में उत्सत्र भाषण रूप प्ररूपणा करनेसे संसार वृद्धिका भय लगता होवे तथा शास्त्रकार महाराजोंके वचनोंपर श्रद्धा रखने वाले सम्यक्त्व धारी होवे तब तो सबी तीर्थंकर महाराजोंके संबंध वाले व्यवहार नयके पूर्वापरके सब पाठको छोड़ करके गच्छ कदाग्रहके अभिनिवेशिक मिथ्यात्वसे मध्यका अधरा पाठ लिखके भोले जीवोंको भ्रमानेका कारण किया तथा अनेक शास्त्रों में खुलासे छ कल्याणक लिखे हैं जिसपर से बाल जीवों की श्रद्धा भ्रष्ट करनेका उद्यम किया जिसका मिच्छामि दुक्कडं देना चाहिये। ___और इन्हीं श्रीपंचाशकजी सत्रकी वृत्तिमें श्रीअभय देवसरिजी महाराजने तथा चर्णिमें श्रीयशोदेवसरिजी म. हाराजने सामायिकाधिकार प्रथम करेमिभंते पीछे इरियावही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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