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________________ [४८३ ] चार मुष्टी लोच किया ६, श्रीआदिनाथ स्वामी पांचसी धनुष्यके शरीर वाले १ समयमें १०८ मुनि मोंके साथ मोक्ष पधारे ७, श्रीवीर प्रभुकी दूसरी देशनामें संघस्थापना हुई ८, तथा जन्म समय श्रीमहावीर स्वामीने मेरुको कंपाया , और अपर्याप्तऐकेंद्रिय जीवों को श्रीकर्मग्रंथमें सम्यकत्वी कहें १० इत्यादि अनेक बातें अल्प अपेक्षा सं. बंधी भी निश्चय नय करके शास्त्रों में प्रगट पने देखने में आती हैं जिस पर भी कोई अज्ञानी कदाग्रहसे बहुत अपेज्ञा वाली व्यवहार नयकी बातो के पाठों को बाल जीवों के आगे दिखाकर अल्प अपेक्षा वाली निश्चय नयकी उपरोक्त बातों को निषेध करके भोले जीवों को भ्रममें गेरनेका उद्यम करे तो उसीको श्रीजिनाज्ञा भंगके दूषण की प्राप्ति अवश्यमेव होगी तैसेही श्रीतीर्थकर गणधर पूर्व धरादि महाराजों ने और सबीगच्छो के पर्वाचार्योंने अनेक शास्त्रों में श्रीवीरप्रभुके निश्चय नय करके छ कल्याणकोंको खुलासे कथन किये हैं सो प्रत्यक्ष दिखता है तो मी न्यायरत्नजी सबी तीर्थंकर महाराजो के पांच पांच कल्याणकोके बहुत अपेक्षा वाले व्यवहार नयके पाठसै निश्चय नयके श्रीवीरप्रभुके छ कल्याणकों को निषेध करते हैं सो श्रीजिनाज्ञाके अंगका दूषणकी प्राप्ति के सिवाय और क्या लाभ संपादन करेंगे सो विवेकी पाठकगण स्वयं विचार सकते हैं,-- और ( अगर जैन शास्त्रो में छ कल्याणक होते तो नय अंग शास्त्रकी टीका करने वाले महाराज अभयदेवसूरिजी खुद पांच कल्याणक क्यों बयान करते) यह अक्षर भी न्याय रत्नजीके विद्यासागरादि विशषणों को लज्जाके कराने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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