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________________ उन्मार्ग ठहरानेहप मिथ्यारवका कारण किया, क्योंकि बीममयदेवमूरिजीने इन महारालको शास्त्राध्ययन कराये बाद क्रिया उद्धारका उपदेश दिया उसी मुजब चैत्यवासी अपने गुरु की आज्ञासे भीअभयदेवसूरिजी महाराजके पास क्रिया उद्धारसे शुद्ध संयम अङ्गिकार किया और कितनेही काल गुजरातने बिहार करते हुए विशेष लाभ जानकर मेवाड़ देशमें विहार किया यहां चितौड़में अविधिमें पड़ेहुए चैत्यवासियोंके भक्तोको श्रीजिनाजानुसार शास्त्रोक्तविधि मार्गमें स्थापन किये थे नतु अपने कल्पित मार्गमें जिनाज्ञा विरुद्ध-इसलिये जिनाज्ञाका प्रकाश करनेको धर्मसागरजीने द्वष बुद्धिसे नवीन मत व्यवस्था स्थापनका लिखा सो प्रत्यक्ष मिथ्या है इसका विशेष खुलासा इस ग्रन्यके पढ़नेवाले विवेकी जन स्वयं कर लेवेंगे। और चितोडमें श्रीजिनवल्लभसूरिजीने चौमासा किया तब आश्विन बदी १३ को मीमहावीरप्रभुके छठे गर्भापहाररूप दूसरे च्यवन कल्याणकका दिन आया उसकी आराधना करने के लिये प्रावकोंके साथ चैत्यवासियोंके मन्दिरमें देववन्दन करनेको जाने लगे, उसको देखके चैत्यवासिनी मार्या (जतनी) ने विचारा कि-पूर्व किसीने नहीं किया तो यह कैसे करेंगे ऐसा विचारके चैत्य ( मन्दिर ) के दरवाजे आडि गिर गई और महाराजको चैत्यके दरवाजेपर आये हुऐ देखकर वो चैत्यवासिनी जतनी साध्वी बोली कि, मेरे जीवते हुए तो मेरे मन्दिरने न जाने दूंगी, परन्तु मेरेको मारकर मेरे-मरे पीछे जावो तो तुमारी खुसी तब महाराज उसका ऐसा क्रोधयुक्त दुष्ट अध्यवसायका क्लेश बढ़ानेवाला अप्रीतिका बचन सुन कर पीछे लौट आये। इसपर धर्मसागरजीने चैत्यवासिनी साध्वीके कहने मुजब छठे कल्याणककी नवीन प्ररूपणा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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