SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १४३ ] सिद्धता करनेके लिये, ब्राह्मण चारण भाट और कुलगर ( गृहस्थ लोगोंके वंश परम्परा सुनानेवाले ) वगैरहोंकी तरह चैत्यवासियोंने भी गच्छ परम्पराके बहाने भोले जीवोंको अपने वाड़ेनें रख छोड़े थे इसलिये ही तो श्रीसङ्गपटकको व्याख्या वगैरह शास्त्रकारोंने गच्छोंके पक्षपात परम्परा रूप वाड़ के बन्धनको तोड़नेके लिये और दृष्टिराग छोड़कर शुद्ध विधि मार्ग श्रीजिनाशा अङ्गिकार करनेके लिये बहुत लिखा है सो तो छपा हुआ सङ्घपटक प्रसिद्धही है इसलिये श्रीअभयदेवसूरिजी श्री जिनवल्लभसूरिजी श्रीजिनदत्तसूरिजी श्री जिनपतिसूरिजी वगैरह महापुरुषोंने गच्छ बन्धन के वाड़ेके कारणभूत पिछाड़ी परम्परागतमें न होनेके लिये अपने खरतर विरुदको अलग करके न लिखा और चन्द्रकुलके अन्तरगत उस समयके सर्वमान्यचन्द्रकुलादिको लिखते रहे हैं, आत्मकल्याण और परोपकार तो मीजिनाज्ञा पूर्वक सत्योपदेशमें है किन्तु गच्छके पक्षपातके बन्धनरूपवाड़ में नहीं है । अब मेरेको बड़े ही अफसोस के साथ लिखना पड़ता है कि वर्त्तमानिक श्रीतपगच्छ में बड़े बड़े विद्वान् कहलाते हैं परन्तु धर्मसागरजी आत्मारामजी वगैरहोंकी अन्धपरम्परा में फसकर गड्डरोह प्रवाहकी तरह एक एककी देखादेखी विवेक बुद्धिसे कारण कार्यको तथा उन महापुरुषों के भाष्यचूर्णिकारा पूर्वधरादि पूर्वाचार्यों के अभिप्रायको और उस समय के चैत्यवासियोंकी गच्छके नामसे अपना अपना वाड़ा बांधने की खोटी प्ररूपणा वगैरहका विचार किये बिना और श्रीदेवेन्द्रसूरिजी श्री क्षेमकीर्त्तिसूरिजी श्रीधर्मघोषसूरिजी के बनाये ग्रन्थोंकी प्रशस्तिके लेख रूप अपने घरको देखे बिनाही श्रीनवाङ्गी वृत्तिकारक श्री अभयदेवसूरिजीने 'खरतर न लिखा' 'खरतर न लिखा' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy