SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [६४७ ] वर्तमानमें भी देशकालानुसार मानने में आता है उससे लौकिक पञ्चांगमें दो श्रावण या दो भाद्रपद होवे तब भी आषाढ़ चौमासीसे ५० दिने दूसरे प्रावणमें या प्रथम भाद्रमें श्रीपर्युषणा पर्वका आराधन श्रीकल्पसूत्रके तथा उसकी अनेक टीकाओंके आधारसे पूर्वाचार्यों को आज्ञा मुजब आत्मार्थी करते हैं; तथा (दुसरा) श्रावकके सामायिक करने सम्बन्धी सब शास्त्रों में पहले करेमिभन्तेका उच्चारण करे बाद पीछेसे इरियावहीकी क्रिया करके स्वाध्याय करना कहा है, और (तीसरा) शासननायक श्रीवर्द्धमान स्वामीजीके छ कल्याणक श्रीतीर्थङ्कर गणधर पूर्वाधरादि पूर्वाचार्यो'ने मूल आगमादि पञ्चांगीके अनेक शास्त्रों में कथन किये हैं। जिसपरभी इनऊपरकीबातों सम्बंधी शास्त्रोंके प्रत्यक्ष पाठोंके अक्षरोंका भावार्थको सद्गुरुसे या विवेकबुद्धिसे-वांचे सुने, विचारे, बिनाही गड्डरीय प्रवाहकी तरह विवेक शून्यताकी अन्धपरम्परासे ऊपरकी बातोंको निषेध करके । प्रथम । काल चूला वगैरह के बहानोंसे (अधिक मासके ३० दिनों में धर्म कार्यका व्यवहार करकेभी) श्रीअनन्ततीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि पूर्वाचार्यो केकथन किये हुए मूल आगमादि पञ्चांगीके अधिक मासगिनतीमें प्रमाण करने सम्बन्धी अनेक शास्त्रोंके पाठोंका उत्थापन करके उसको गिनतीमें नहीं लेनेका ठहराते हुए लौकिक पञ्चांगमें दो श्रावणहोनेसे प्रगटपने शास्त्र विरुद्ध भाद्रपदमें ८०दिने या दोभाद्र पद होनेसे दूसरे भाद्रमें ८०दिने पर्युषणा करने वाले, तथा (दुसरा) श्रीमहानिशीथसूत्रके तीसरे अध्ययनका चैत्यवंदन उपधान सम्बन्धी पाठको, और श्रीदशवैकालिकसूत्रकी दूसरी चलिकाके साधुको गमनागमनसे इरियावही पूर्वक स्वाध्याय करने सम्बन्धी पाठको, आगे करके श्रावकके सामायिक पहिले इरियावही पीछे करेमिभन्तेको स्थापन करते हुए, श्रीआवश्यक चूणि, रह www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy