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________________ [ ६३७ ] करनेवालोको भी हमतो सम्यकत्व शल्योद्धारके जैसे लोक विरुद्ध अनुचित शब्दोंको लिखने अच्छे नहीं समझते हैं। ___ और 'आगमोक्तः षष्ट कल्याणकः' यह वाक्य ऊपरके पाठमें विद्यमान है याने श्रीकल्पसूत्र तथा श्रीआचारांगजीसूत्र और श्रीस्थानांगजीसूत्र वगैरह शास्त्रों में छठे कल्याणकका प्रत्यक्षपने कथन किया हुआ है ( इसके प्रमाणमें इसी विषयकी आदिमेंही अनेक शास्त्रोंके प्रमाण मूलपाठ सहित छप चुके हैं ) तिसपर भी न्यायांभोनिधिजीने अपना कल्पित पाखण्ड जमानेके लिये ( यह छठा कल्याणक नवीन कथन किया तो फिर किस वास्ते सिद्धान्तका झूठा नाम लेकर लोगोंको भ्रममें गेरते हो ) इस तरहका लिखकर नवीन छठे कल्याणकको प्ररूपणा करनेका ठहराया और छठे कल्याणककी सिद्धि सम्बन्धी जो जो शास्त्रोंके पाठ “शुद्ध समाचारी प्रकाश" नामा पुस्तकमें, दिखाये गये थे उन शास्त्र पाठोंको लोगोंको भ्रममें गेरने वाले जूठे ठहराये सोतो खास आपही निजमें उन शास्त्रपाठोंको उत्थापन करके उत्सूत्रभाषणसे कुयुक्तियोंके विभ्रममें भोले जीवोंको भ्रमाने वाले बने है नतु 'शुद्ध समाचारी प्रकाश' वाले क्योंकि उन्होंने तो जो जो पाठ छठे कल्याणककी सिद्धि के लिये लिखे हैं सो सब सत्य है परन्तु छठे कल्याणकको निषेध करने वालेही श्रीजिनाज्ञाके विराधक बनते हैं सोतो इस ग्रन्थको वांचनेवाले विवेकी तत्वज्ञ जन स्वयं विचार लेवेगें और आगे फिर भी न्यायांभोनिधिजीने लिखा है कि (पृष्ठ पंक्ति में तपगच्छीय एक कुलमण्डनमूरिजीका जो उदाहरण दिया है सोतो तुमारे वडोकाही अनुकरण किया है। पूर्व पक्ष ॥ श्रीकुलमण्डनसूरिजीने अनुकरणही किया है यह कैसे हमजान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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