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________________ [C] भवि अगाराओ अणगारियं पवइए, चित्ताहिं अणं ते अणुत्तरे शिवाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुन केवल वर नाण दंसणं समुत्पन्न े, चित्ताहिं परिनिव्वुए |१| पुष्कदं तेणं अरहा पंच मले होत्या, मूलेण चरा चहत्ता गर्भवकते, एवं चेव एएणं अभिलावेण इमाओ गाहाओ अणुगंतव्वाओ पउमप्पभस्स चित्ता, मूले पुणहोइ पुष्कदंतस्स । पुर्वासा - ढा सीयलस्स, उत्तरा विमलस्स भट्टवया ॥१॥ रेवइय अनंतजिणो, पूसो धम्मस्स - संतिणी भरणी । कुंथुस कत्तियाओ, अरस्त तहा रेवई मोय ॥ २ ॥ मुणिवयस्स सवणो, आसिणि ममिणो तह नेमिणो चित्ता । पासस्स बिसाहाओ, पंच इत्थुत्तरे बीरो || ३ || समणे भगवं महावीरे पंच हत्युत्तरे होत्या, तंग हाइत्युत्तराहि चुचइत्ता गर्भवकते, हम्थुत्तराहिं गम्भाओ गम्भं साहरइए, इत्युत्तराहिं जाए, हस्थुत्तराहि मु डेभविता लाव पवइए, इत्युत्तराहिं अण ते अणुत्तरे जाव केवल वर नाण दंसणे समुपने ॥ इति ।। , ܘ भावार्थ:- छठे श्रीपद्द्मप्रभु अरिहंत के पांच कल्याणक चित्रा नक्षत्र में हुए सो कहते है । चित्रा नक्षत्र में देवलोक से च्यव करके माताको कुक्षिमें उत्पन्न हुवे, चित्रा नत्र में जन्म लिया, चित्रा नक्षत्र में गृहस्थावास त्यागके अणगार पणापाये दीक्षाली, चित्रा नक्षत्र में अनन्त, सर्वसे उत्तम उत्कृष्ट, व्याघात रहित, आवरणरहित, कृत्स्न - सर्व अर्थके जानने वाला, प्रतिपूर्ण सम्पूर्ण चंद्रमंडल की तरह प्रकाशमान, प्रधान केवल ज्ञान और केवल दर्शन उत्पन्न हुवा, चित्रा नक्षत्र में मोक्ष पधारे १, तथा नवमें श्रीब्रुविधिनाथजी अरिहंत के पांच कल्याणक मूल नक्षत्र में हुए, हो मूल नक्षत्र में देवलोक से च्यव करके माताकी कुक्षिमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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