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________________ [ ६१२ ] कल्यानककी जडता सिद्ध कर दिखाइ तो फिर आपका जितना प्रयास है सो तो स्वतःही व्यर्थ है,] उपरके लेखकी समीक्षा करके सत्यग्रहणाभिलाषी मध्यस्थ आत्मार्थी तत्वज्ञ सज्जन पुरुषोंको दिखाता हूँ सोपाठक गणको मिष्पक्षपाती होकर इन लोगोंकी विद्वत्ताकी चातुराई का ममूना पूर्वक मैंरी लिखी समीक्षाको अच्छी तरहसे विचार करके अंधपरंपराके मिथ्याश्रमको कल्पित बातको त्यागके शास्त्रानुसार सत्य बातको ब्रहण करनी चाहिये सो न्यायाभोनिधिजीको उपरोक टीकाके पाठका अभिप्राय तो क्या परन्तु शब्दार्थ भी समझ में नहीं आया मालूम होता है उसीसे टीकाकारके विरुद्धार्थ में होकर श्रीजिनवमसूरिजी महाराजको झूठादूषण लगाके उपरको टीकाके पाठपर अपनी कल्पनामुजब प्रत्यक्ष मिथ्या लिख करके भद्रजीवोंको मिथ्यात्वके भ्रममें गेरनेका कारण करके क्याही संसार वद्धिका कारण किया है जिसमें प्रथम तो (आपके बहोंने षट् कल्याणककी परपणा किनी सोही आद्यमें गणधरसाई शतकका पाठ हमने लिख दिखाया है फिर भी आपको दूढ फरनेके वास्ते गणधरसाईशतकको बृहत् वत्तिका पाठ दिखाते है ) यह लेख ही बाल लीलाकी तरह अज्ञानताका सूचन करानेवाला मिथ्याहै क्योंकि हमारे बड़े प्रीजिनवमसूरिजोने मीसिद्धसेनदीवाकरजी तथा श्रीमभयदेवसूरिजी महाराजकी तरह प्रीजिनेखर भगवान्को कथम करी हुई शास्त्र प्रमाण पूर्वककी लुप्त हुई षटकल्याणककी सत्य बातको प्रगट करी है जिसको माप लोग विवेक शून्यतासे समझे बिना नवोन प्ररूपणाकरनेका दोष उगाते हो सो समवृथा है इसका पूर्व में इसो बम्पके पट ५६० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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