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________________ सह होता दोनोका मादकोंको पदार्थ म [५ ] भोनिधिजीके पूर्वज पूज्यने (पीजम्बूद्वीप प्राप्तिकी वृत्तिका पाठ उपरमें ही छपा है उसी में) श्रीआदिनाथजीके च्यवनादि कोंको वस्तु कही तथा उन्हीं च्यवनादिकोंको ही कल्याणक भी कहे और कल्याणकाधिकारमें ही राज्याभिषेक रूप वस्तु को कल्याणक रहित ठहराकर मीमहावीरस्वामीके छ कल्या. णक खुलासे लिख दिये इससे भी प्रगटपने सिद्ध होता है, कि-तीर्थकर महाराजके च्यवनादिकोंको वस्तु कहो अथवा कल्याणक कहो दोनोका मतलब एक ही है परन्तु वस्तु शब्द पदार्थ मात्रके अर्थवाला होनेसे राज्याभिषेकको कल्याणक न कहके प्रथम तीथकरका राज्याभिषेक उसी नक्षत्र इन्द्रने करके भरत क्षेत्रमें राज्यनीतिका व्यवहार प्रवर्तमान करनेका कारण किया उससे राज्याभिषेकके कार्यको वस्तु कह दिया तथा राज्याभिषेक बिना पांच कल्याणक खुलासे दिखा दिये, तथा राज्याभिषेकको कल्याणकपना नहीं कहा जा सकता जिसके लिये भी पहिले लिखने में आ गया है और मीवीरप्रभुके गर्भापहारको तो कारण कार्य भाव पूर्वक तपा शा. खोंके प्रमाण मुजब और युक्तियोंके अनुसार प्रगटपने कल्या. णकपना सिद्ध होता है जिसका विस्तार तो इस अन्यमें अच्छी तरहसे हो गया है इसलिये राज्याभिषेकको कल्याणक ठहराने सम्बन्धी तथा वस्तुके बहाने मोआदिनाथजीके पांचों कल्याणकोंका और श्रीवीरमभुके गर्भापहार सहित छ कल्याणकोंका निषेध करनेका लिखा है सो सब वयाही गच्छ कदाग्रहके अन्ध परम्पराका हठवादको अज्ञानतासे या अभिनिवेशिक मिथ्यात्वसे भोले जीवोंको भ्रमानेवाला और निजपरके संसारका कारण रूप उत्सूत्र भाषण है सो तो उपरोकडेखसे विवेकी तत्वज्ञ जन स्वयं विचार लेवेंगे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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