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________________ [ yee ] शुद्ध समाचारी प्रकाशकी पुस्तक के लेखकको उपरोक्त पाठकी अच्छी तरहसे मालूम थी तथा हमको भी उसकी अनेक व्याख्याओंके पाठों सहित कारण कार्य भाव पूर्वक सूत्रकारके तथा व्याख्याकारोंके अभिप्राय सहित अच्छी तरहसे मालूम है तब ही तो आपके मायाजालवाला कदाग्रहके भ्रमको निवारण करनेके लिये राज्याभिषेक सम्बन्धी इतना लिखा है तथा आगे लिखते हैं अन्यथा कैसे लिखते सो तो विवेकी जन स्वयं विचार लेवेंगे, - और (हे सुज्ञ जनो विचारिये कि जैसे श्रीमहाबीर स्वामीजीके पाठ विषे छ वस्तु कथन करी तैसे ही श्री ऋषभदेवस्वामी पाठ विषे भी छ वस्तु कथन करी हैं ) इत्यादि लिखके न्यायां भोनिधिजीने वस्तुके बहाने श्रीमहावीरस्वामीके तथा श्रीऋऋषभदेवजीके भी व्यवनादिकोंको कल्याणकपने रहित ठहरानेका परिश्रम किया सो भी गच्छ कदाग्रह में फँस कर अज्ञानतासे विवेक शून्यतापूर्वक अथवा मायाधारी से उत्सूत्र प्ररूपना करके संसार बृद्धिका और अपनी विद्वताको लज्जानेका बृथाही कारण किया है क्योंकि यद्यपि वस्तु शब्द कल्याणक अर्थका सूचक पर्यायवाचीपने करके एकार्थवाला है जिसके सम्बन्धमें हमने पूर्व में लिखा है परन्तु वस्तु शब्द सर्व अर्थों में तथा सर्व लिङ्गों में और लोकालोकके सर्व पदार्थों का सूचक है सो भी पहिले हम लिख आये है और शास्त्रके पाठका अर्थ तो शास्त्रकार महाराजके अभिप्राय पूर्वक, कारण कार्य भाव सम्बन्ध सहित, प्रसङ्ग मुजब, आत्मार्थी परोपकारी टीका कारोंके लिखे मुजब करनेमें आता है इसलिये वस्तुके बहाने श्रोऋषभदेवजीके और श्रीमहावीरस्वामीके च्यवनादि सबी कल्याव कोका निषेध नहीं हो सकता है क्योंकि देखो न्यायां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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