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________________ [५७४ ] माया मिथ्या और उत्सूत्र भाषणरूप उपरका लेख लिखकरके भोले जीवोंको भ्रममें गेरनेके लिये मिथ्यात्वका कारण कदापि नहीं करते क्योंकि देखो शुद्ध समाचारी प्रकाशमैं श्रीमहावीरस्वामीके षष्ठ कल्याणकाधिकारे पष्ठ ७० से ७३ तक श्रीआचारांगादि शास्त्रोंके पाठ लिखे सो उन पाठोंसे भगवान के च्यवनादिकोंको कल्याणकारहित ठहरामेका परिश्रम आत्मारामजी ने किया सोसर्वथा वथा है क्योंकि श्रीआचारांगजीमें श्रीमहावीर खामीके चरित्रका वर्णन किया है जिसमें च्यवनसे लेकर मोक्ष गमन पर्यंतके मास पक्ष तिथि नक्षत्रों का खुलासा पूर्वक वर्णन किया है उसी में च्यवनादिकोंको कल्याणकत्वपना तो अनादिसे स्वयं सिद्ध है कारणकि-अनादि कालसे श्रीअनन्त तीर्थकर गणधरादि महाराज श्रीतीर्थंकर भगवान्के च्यवनादिकोंको कल्याणक कहते आये हैं तथा वर्तमानमें भी कहते हैं सो जैनमें प्रसिद्ध है तथापि श्रीआत्मा रामजीने श्रीआचारांगजी सूत्र में प्रोवीरम के सम्पूर्ण चरित्रको ही कल्यणकों रहित ठहरा दिया। हा अति खेद ! कितनी बड़ी आश्चर्यकी बात है कि न्यायांभोनिधिका विशेषण धारण करके भी प्रत्यक्ष मायाचारी पूर्वक अन्याय करते हुए अपने गच्छ कदाग्रहकी कल्पित बातको स्थापन करनेके आग्रहमें फंसकर श्रीतीर्थंकर भगवान्के च्यवनादिकोंका प्रचलित कल्याणकके अर्थको जड़ मूलसे उठा करके श्रीअनन्त तीर्थकर गणधरादि महाराजोंकी कथन करी हुई बातका उत्थापन करनेसे संसार वृद्धि का क्रिचित्मान भी हृदयमें विचार न किया ॥ खैर ॥ भब. पाठकवर्गसे मेरा यही कहना है कि-जैसे किसी शास्त्रमें “गौचरीके ४२ दोष रहित भिक्षावत्ति करके नितिपारपंच महाव्रतोंका पालन पूर्वक कर्मों का क्षय कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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