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________________ [493] और श्रीमहावीरस्वामीके छ कल्याणक भव्यजीवोंको दिखानेके लिये शुद्ध सामाचारी प्रकाश नामा पुस्तकर्मे श्रीआचाराङ्गादि शास्त्रों के पार्टीको पं० प्र० यतिजी श्रीरायचन्दजीने लिखे जिसको श्री आत्मारामजी ग्रन्यके भार भूत याने सर्वथा वृथा ठहराते हैं सो तो भगवान्की वाणीरूपी शास्त्रोंकी अवज्ञा करके उत्सूत्रभाषण से अपने और दृष्टिरागी जूठ पक्ष ग्राही जनोको संसार परिभ्रमणका और ज्ञानावर्णिय कर्म उपार्जन करनेका निमित्त भूत गच्छकदा ग्रहको स्थापन करने के लिये वृथाही इतना परिश्रम क्यों किया होगा जिसको तो उपर मेंही पृष्ठ५५८/५५९०५६० के लेखको पढ़नेवाले पाठकवर्ग स्वयं विचार लेवे गे और आगे फिरभी आत्मारामजीने भोलेजीवोंको भ्रमानेके लिये जैन सिद्धान्त समाचारीके पष्ठ ६७ की पंक्ति २३ वींसे पृष्ठ ६८ की चौथी पंक्तिक एसे लिखा है कि ( पृष्ट 90 से लेके पष्ठ १३ तक आचाराङ्ग स्थानात दशाश्रुतस्कन्ध चूर्णिके जो पाठ लिखे हैं, उसमें कल्याणक शब्दका गन्ध भी नहीं है क्योंकि प्रथम आचारांग में पंच हत्युत्तरे होत्था ऐसा पाठ है और टीकाकारने निवत्तिस्तुस्वातौ निर्वाण स्वाति नक्षत्रमें ऐसा कहा है और दशाश्रुत स्कन्धकी चूर्णि में उण्हं वत्थुरां कालो वाघरिओ अर्थात् छ वस्तुओंका काल कथन किया ऐसा पाठ है तो फिर तुमने जोरा जोरी छ कल्याणक कैसे बना लिये ) उपरके लेखकी समीक्षा करके पाठकवर्गको दिखाता हू कि हे सज्जन पुरुषो जो श्रीआत्मारामजी श्रीजिनाचा के आराधक आत्मार्थी भवभीरु सत्यग्रहण करनेवाले भव्य जीवोंके उपकारी होते तो गच्छ कदाग्रहसे श्रीआचारांगादि शास्त्रोंमें कल्याणक शब्दका गन्ध भी नहीं है इत्यादि प्रत्यक्ष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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