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________________ [ ५६५ ] बृत्तियें बनाई और श्रीस्थम्भनक पार्श्वनाथजी महाराजकी प्रतिमाको प्रगट करी उसीको श्रीखरतरगच्छादि वाले श्रीअभय देव सूरिजी महाराज के चरित्र में इतिहासिक वार्ता सम्बन्धी जगह जगह पर बहुत शास्त्रोंमें लिखते आये हैं सो उन महाराज की प्रशंसाकी बात है नतु निन्दा की । तैसेही इन्हीं महाराजके शिष्य श्रीजिनवल्लभ सूरिजी महाराजने चीतोड में अविधिमार्गका निषेध पूर्वक विधिमार्गके प्रगट करनेमें छठ े कल्याणकको भी प्रगट किया सो श्रीखरतर गच्छवालोंने श्रीजिनवल्लभ सूरिजी महाराजके चरित्र में इतिहासिक वार्ता सम्बन्धी लिखा सो तो उन महाराजका कर्तव्य शास्त्रानुसार भव्य जीवों को विधि मार्गका दिखानेवाला होनेसे उन महाराजकी प्रशंसाका कारण है नतु नवीन प्रगट करनेके बहाने निन्दाका कारण ॥ तथा औरभीदेखो खास आत्मारामजीही अपना बनाया 'जैन तत्वादर्श' के बारहवें परिच्छेदमें गुर्वावली अधिकारे पूर्वा चार्यों के चरित्रोंमें उन महाराजोंकी प्रशंसा सम्बन्धी श्रीसिद्ध सैन दिवाकरसूरिजी महाराजके चरित्र में उन महाराजने उज्जेणी नगरीमें श्रीऐवंती पार्श्वनाथजी महाराजकी प्रतिमाको प्रगट करी ऐसा लिखा है जिसको श्रीऐवंतीपार्श्वनाथजी महाराजकी प्रतिमाके द्वेषी तथा श्रीसिद्धसेन दिवाकर सूरिजी महाराज के निन्दक ढूंढ़िये और तेरहापन्यी लोग भोले जीवों को अपने फन्दमें फंसाने के लिये जिनमूर्तिका नवीन प्रगट करना कहे तो उनको पूर्ण अज्ञानीके सिवाय विवेकी तत्वज्ञ तो कदापि नवीन प्रगट करना नहीं कहेंगे किन्तु लुप्त बातका प्रगट होना तो अवश्यही कहेंगे तैसेही श्रीजिनवल्लभ सूरिजी महाराजने भी चीतोड में विधिमार्गकी विच्छेद (लुप्त ) बातोंके प्रगट करनेमें छठे कल्याणकको भी प्रगट किया जिसको उन महा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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