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________________ [ ५६४ ] कल कितनीही कल्पित बातोंमें दृष्टिरागी भोले जीवोंको भ्रमाकरके अपने फन्दे में फसालिये तथा शास्त्रानुसार कितनीही सत्यबातोंका लुप्तभाव करदिया और नियतवासी परिग्रहधारी वाग वगीचे चैत्यके ममत्वी होकरके निन्दा ईर्षासे शुद्ध साधुके द्वषी बनकर अपना अधिकार जमाये बैठे थे तब वहां श्रीजिनवल्लभ मूरिजी महाराज पधारे सो चैत्यवासियोंके दूष्टिरागी आवकोंने ठहरनेको जगा तक भी न दी तब चामुण्डा देवीके मन्दिरमें महाराज जाकर ठहरे और शास्त्रानुसार शुद्ध व्यवहार पूर्वक धर्मध्यान तपश्चर्यादि करके समय ध्यतीत करने लगे सो देखकर देवी भी महाराजको मक होगई तब महाराजने उपदेश देकरके जीव हिंसाका त्याग पूर्वक जैन धर्मानुरागीकरी और सर्व शास्त्रों में ज्ञात सूर्यकी तरह प्रसिद्धिको प्राप्त होनेवाले श्रीजिनवल्लभ सूरिजी महाराजके पास सत्यग्रहणाभिलाषी अल्प संसारी आत्मार्थी जो जो भव्यजीव आने लगे उन्होंके आगे महाराज भी शास्त्रानुसार उपदेश पूर्वक चैत्यवासियोंकी कल्पित बातोंके चमकोच्छदन करके श्रीजिनाज्ञा मुजब सत्य बातोंको प्रगट कहने लगे तथा चैत्यवासियों के दृष्टिरागका कदाग्रहको छोड़ा करके शुद्ध व्यवहारमें लाये और वहां अविधिमार्गका निषेध पूर्वक विधिमार्गको प्रगट करा जिसमें श्रीमहावीरस्वामीके गर्भापहार नामा छठा कल्याणक भी लुप्तभाव को प्राप्त हो गया था जिसको भी प्रगट किया सो तो शास्त्रानुसार होनेसे विवेकशून्य या गच्छकदाग्रहियोंके सिवाय और तो कोई भी नवीन प्रकट करणा कदापि नहीं कह सकते क्योंकि देखो जैसे श्रीजिमवल्लभसूरिजी महारानके ही परम पूज्य गुरुजी महा रान श्रीअभयदेव मूरिजी महाराजने भीमवाङ्ग शास्त्रोंकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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