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________________ [ ७ ] तो मीशानीजी महाराज जानें और उन्हीं विनयविक्रयणीके वाक्योंको वर्तनामिक भीतपगच्छ वाले गच्छममत्वी दुराबड़ी लोग श्रीपर्युषण पर्व में धर्म ध्यानके दिनोंमें बांधकर ऊपर सृजब महान् अमर्थ करके भोले जीवोंको भ्रम में मेरकर बांचनेवाले अपनी आत्माको और सुननेवालोंके सम्यक्त्व नष्ट पूर्वक मिध्यात्वमें गेरमेका और दुर्लभ बोधिपमेका कारण करते हैं इसी कारण ही तो वास्तव्य में गुणनिष्पत्र "दुर्लभ बोधिका" नाम सिद्ध होती है । इसलिये मच्छ दुराग्रहते आपसके वृथा खण्डन मण्डनके झगड़े से जो महान् अमर्थ होता है उसका निवारण करनेके लिये गच्छ दुराग्रहियोंपर अनुकम्पा और भावदया लाकर उन्होंको संसार परिभ्रमणके अनर्थसे बचाने के लिये सुमति मागिल श्रावकका दृष्टान्त पूर्वक तथा वर्तमानिक व्यवस्था पूर्वक भवभीरू श्रीजिनाचा आराधक आत्मार्थियों के हितशिक्षा के लिये और संसार भ्रमणके प्रवाहके कार्यका सुधारा करने सम्बन्धी आगे लिखने में आवेगा । इत्युपाध्यायविशेषणधारको विनयविजय विरचित श्री कल्पसूत्रसुबोधिकाव्याख्यायां षट्कल्याणकप्रति ष ेध सम्बन्धिलेखस्य मणीसागराख्यमुनि-कृता उपर्युक्तसमीक्षासमाप्ता जाता ॥ अब इस वर्त्तमानकाल में सुप्रसिद्ध श्रीआत्मारामजीने भी अन्ध परम्पराके गच्छकदाग्रहको पुष्ट करके उसीके भ्रमचक्रमें भोले जीवको फसानेके लिये शास्त्रकार महाराजों के विरु द्वार्थ में उत्सूत्र भाषणका और कुयुक्तियोंके विकल्पोंका संग्रह पूर्वक प्रीतीर्थ कर गणधरादि महाराजोंके कथनका उत्थापन बदके दूड़क मतके पूर्वस्वभावानुवाद संवेगी पननें भी 'जैन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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