SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ५६ ] ॥ और जैसी भवितव्यता आगे होनेवाली होवे वैसी बुद्धिभी हो जाती है उसीके अनुसार यद्यपि सुमति और नागिल भावकने धर्म आराधन करनेके लिये गुरुके पास दीक्षा लेनेका अभिलाव किया इतनेमें वेषधारी पासथोंका योग मिला तब बाईसवें भगवान्के कथनानुसार सुगुरुके और कुगुरु के लक्षण मागिल श्रावकने सुमति नामा भावकको कहे सो सुनकर वेषधारियोंके दृष्टि रागसे सुमति श्रावकने नागिल भावक पर अन्तर मिथ्यात्वके उदयसे क्रोध करके भगवान् के गुण जानता था तो भी बाईसवें तीर्थङ्कर श्रीनेमिनाथजीकी आशातना वाले शब्द बोले और श्रीजिनाचा विराधक पासथोंकी प्रशंसा करी । उसी से अनेक पुद्गल परावर्तनका तथा अनन्तभव भ्रमणका और वारंवार नरक गतियों के दुःख विटम्बनाका महान् अनीष्ट कर्म उपार्जन किया || तैसे ही भावी भावके अनुसार यद्यपि विनय विजयजीने भी सुबोधिकामें नामानुसार व्याख्या करनेका परिश्रम किया होगा। तथा उत्सूत्र भाषणों और भग वान्की आशातनासे संसार बृद्विके विपाक भी जानते होंगे. तथापि अन्ध परम्पराके दुराग्रहकी कल्पित बातको स्थापन करनेके लिये श्रीवीरप्रभुकी आशातना पूर्वक उत्सूत्र भाषणका और कुयुक्तियोंके विकल्पोंका संग्रह करके छ कल्याणकोंका निषेध सम्बन्धी तथा पर्युषणा विषयिक अधिक मासका निषेध सम्बन्धी विनय विजयजीने जो जो शब्द लिखे हैं उन्होंने श्री अनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजकी आशातना करी है और उन्हीं महाराजोंकी आता मुजब पञ्चाङ्गी शास्त्र प्रमाणानुसार वर्तनेवालोंको दूषित ठहराकरके भीजिनाचा विराधक अन्धपरम्परा वालोंकी बातको पृष्ठ करी है उकितने संसार भ्रमणका कर्म उपार्जन किया होगा जिसकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy