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________________ लेखकीय 'सहू सयाने एक मत' वाली कहावत चरितार्थ हुई। परतंत्रताकी बेड़ियाँ टूटी भारतीय जनताको मुक्त वातावरणमें श्वास लेनेका अवसर मिला। एक साथ अनेकों विचारकोंने, देशके कर्णधारोंने देशका सर्वप्रथम भावी कार्यक्रम चरित्र-निर्माण ही माना। इसीका तो परिणाम था कि महात्मा गांधीकी मृत्युके अनन्तर ही आचार्य विनोबा सर्वोदय-कार्यक्रम जनताके सामने रखते हैं । वे कहते हैं "सत्य और अहिंसापर एक ऐसा समाज बनानेकी कोशिश करना जिसमें जाति-पाति न हो, जिसमें किसीको शोषण करनेका मौका न मिले, जिसमें व्यक्ति-व्यक्तिको सर्वाङ्गीण विकास करनेका पूरा अवसर मिले।" ( जानकारी पत्र सर्वोदय समाज) लगभग उसी कालमें आचार्य श्री तुलसी अणुव्रती-संघका संस्थापन करते हैं, वे अपना उद्देश्य बतलाते हैं “जाति, वर्ण, देश और धर्मका भेदभाव न रखते हुए मानवमात्रको संयम पथकी और आकृष्ट करना ।" "अहिंसाके प्रचार द्वारा विश्वमैत्री और विश्वशान्तिका प्रचार करना।" उद्देश्य और कार्यक्रमकी तुलना दोनों प्रवृत्तियोंको एक ही मस्तिष्ककी सूझ मान लेनेको प्रेरित सी करती है। राष्ट्रपति डा. राजेन्द्रप्रसादने तो आचार्यवरसे अनुरोध किया था कि सर्वोदय और अणुव्रत विचार परस्पर बहुत मेल खानेवाले हैं, मैं चाहता हूं दोनों प्रवृत्तियाँ पारस्परिक सहयोगसे चलाई जाय तो देशका अधिक कल्याण होगा। इसके कुछ ही बाद व्यवहार-शुद्धि आन्दोलन जनताके सामने आ जाता है। अणुव्रत-आन्दोलन और व्यवहार शुद्धि आन्दोलनमें भी कितनी सजातीयता है, यह आप नीचे एक उद्धरण व इस 'भणुप्रत दृष्टि' के अवलोकनसे जाने । व्यवहार-शुद्धि आन्दोलनका प्रतिज्ञापत्र यह है : "मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि(१) व्यापारीके नाते मैं (क) मालकी संग्रहखोरी नहीं करूँगा, जिससे कि बाजारमें उसकी कृत्रिम कमी पैदा हो जाय। (ख) बाजारमें कृत्रिम मांग बढ़ने के कारण बेजा मुनाफा करनेके लिए अपने मालके भाव नहीं बढ़ाऊँगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034471
Book TitleAnuvrat Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagraj Muni
PublisherAnuvrati Samiti
Publication Year1954
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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