SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दो शब्द अनुकम्पा यी हिंसा के विषय पर यह तक छोटी होने पर भी यासारगर्भित है। थोड़े से पृष्ठी में लेखक ने इस विषय पर बड़ा ही सुन्दर प्रकाश डाला है। अाचार्य भौखमनी के अहिंसा विषयक विचारों की सुन्दर इस पुस्तक ओचार्य भीखणजी जैन श्वेताम्बर तेरापन्थी सम्प्रदाय * प्रथम आचार्य भार प्रतिष्ठाता थे। उनका जन्म मारवाद राज्य के कटौलिया ग्राम में सम्बत् १७८३ को जापाद शी त्रयोदशी के दिन हुआ था। उन्होंने २५ वर्षे की युवावस्था में परवास छह जैन सन्यास धारण किया। वर्ष तक वे जैन आचार्य विनायी प्राय में रहै। बाद में जैन मागम अनुसार कठिन सन्यास पालन करने के लिए उनले अलग है गए और पुनदीक्षित ही शुद्ध साधु जीवन-यापन का विचार लिया। भव दीक्षा के लिए अन्य भौ १६ साथी जुट गए। उस समय स्वामीजीक विचारों सहमत श्रीषको की संख्या मी १३ थी। ही साधु और १६ ही श्रषिकों के इस विचित्र संयोग के कारण एक सेवक काँव में उनके क्य का नाम 'तेरापंथ' निकाल दिया। आचार्य महाराज ने कहा- प्रभु! रा पंथ है वह हमारा व है इसलिए हम भले ही तेरापंथी कहलाए। 'स्वामीनों और के सोधियों ने १८१७ में नव दीक्षा ग्रहण की। स्वामीजी और उनके साधु बड़े कठोर आचार का पालन करते । 'अहिंसा' की साधना जैन साधुओं के जीवन की खास साधना होली है। सामीली अहिंसा के महान् उपदेष्टा और साधक थे। उन्होंने जिन भाषित अहिंसा का व्यापक बार किया और उसके पालन में आ घुसी शिथिलता की धज्जियां उड़ाई। जैन तत्व क्षेत्रमें छः प्रकार के जीव माने गए हैं और सबके प्रति आत्मवत् व्यवहार करने का उपदेश दिया गया है। छोटे-बड़े स्थावर त्रस का वहां कोई अन्तर नहीं। स्वामीजी ने जैन अहिंसा की इस विशेषता की और उस समय के साधुओं का ध्यान आकर्षित Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034470
Book TitleAnukampa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Chopda
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1948
Total Pages26
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy