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(१२) वन्दना करनेके लिये आया है। यह आजसे सातवें दिन स्वर्गसे चयकर मध्य लोकमें उत्पन्न होकर उसी भवसे मोक्ष प्राप्त करेगा। श्रोणिकने इस देवके विषयमें विशेष जाननेकी अभिलाषा प्रगट की। गौतम स्वामी कहने लगे:-" इसी देशमें वर्धमान 'नामक एक नगर है। उसमें आयेवसु नामका एक ब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्रीका नाम सोमशर्मा था। इस दंपतिके भावंदेव और भवदेव नामके दो पुत्र हुए। इन दोनोंने विद्यामें अति निपुणता प्राप्त की । कुछ समय बाद आर्यबसु कुष्ठ रोगसे पीड़ित हुआ और परलोक सिधार गया । सोमशर्माने भी पतिके वियोगसे अत्यन्त दुःखी होकर चितामें प्रवेश करके अपने प्राणोंका त्याग किया । कुछ दिन बीतनेके पश्चात् उस नगरमें सौधर्म नामके मुनिका आगमन हुआ। मुनिने धर्मका उपदेश दिया । भावदेवने भी इस धर्मका श्रवण किया और सुनकर मुनिसे दीक्षा लेनेकी अभिलाषा प्रकट की। भावदेव दीक्षित होकर तपस्या करने लगे। कुछ समय बीतनेपर एक दिन सौधर्म मुनि संघसहित वर्धमान नगरमें पधारे । भावदेवको अपने कनिष्ठ भ्राताके ऊपर करुणा उत्पन्न हुई। वे गुरुकी आज्ञा लेकर भवदेवको बोध देनेके लिये चले । उस समय भवदेव अपने विवाह के उत्सवमें संलग्न थे। भवदेवने अपने ज्येष्ठ भ्राताको मुनिके वेषमें देखकर उसका बहुत आदर किया। भवदेवने धर्म-श्रवण करनेके पश्चात् मुनिको आहार दिया । जब मुनि विहार करने लगे, उस समय और लोगोंके साथ भवदेव भी उनके पीछे पीछे चले। थोड़े
१ जयशेखरसूरिके जम्बूस्वामिचरितमें यहींसे कथाका आरंभ होता है। इसके पूर्वका भाग उसमें नहीं पाया जाता। हेमचन्द्र और जयशेखर दोनोंके अनुसार भावदेवकी जगह बड़े भाईका नाम भवदत्त आता है। तथा ये सुग्राम नगरके रहनेवाले थे, और इनके पिताका नाम आर्यवान तथा माताका नाम रेवती था।