SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार 83 वृद्धावस्था धर्म करने की नहीं सोच सकते क्योंकि वह तो वास्तव में सल्लेखना की तैयारी के लिए है। इतिहास के स्वर्णिम पन्ने गवाह हैं कि भगवान महावीर स्वामी जी ने युवावस्था में ही व्रत-नियम, संयम धारण किया था, तपस्चर्या का आचरण किया था और सिद्धात्म पद को प्राप्त किया था। वर्तमान के वर्धमान तपस्वी सम्राट आचार्य श्री सन्मति सागरजी, महात्मा गांधीजी, शंकराचार्य आदि महापुरुषों ने जवानी में ही सत्कर्मों का पुरुषार्थ कर अपने जीवन को सार्थक बनाया। भगवान महावीर ने 12 वर्षों की तपस्चर्या काल में मात्र 349 दिवस आहार किया ऐसा ही सुवर्णिम इतिहास इस पावन परंपरा के अनुयायी तपस्वी सम्राट आचार्य सन्मति सागरजी ने रचा, 50 साल की तपस्चर्या काल में 40 वर्ष कठोर उपवास की साधना का। तपस्चर्या के बाद कई कई दिनों के पश्चात् ऐसे संतो का आहार लेना आहार महोत्सव बन जाता है। तीर्थंकर प्रभु का आहार श्रावक के लिए पुण्य का साधन बन जाता है क्योंकि प्रभु का निहार नहीं होता। उनके आहार में पंचवृष्टि होती है। इसके विपरीत यदि सामान्य ग्रहस्थ का एक दिन भी निहार रुक जाय तो वह परेशान हो जाता है। आप संसारी अज्ञानी मूढ जीव इस शरीर की सेवा करते हो और वे सम्यग्दृष्टि साधक, परम तपस्वी आत्मा की सेवा करते हैं, आप शरीर को संभालते हैं, वो मन को नियंत्रण में रखते हैं। अरे ओ तन पर रीझने वालो! कम से कम इसके पीछे के सच को समझो और इसके प्रति राग को कम करो। यह शरीर तो मल आदि का घर है। कहा भी है पल रुधिर राध मल थैली, कीकस बसादि ते मैली। नव द्वार बहे घिनकारी, अस देह करे किम यारी।। मानव शरीर का कोई अंग ऐसा नहीं है जिससे मल, पीव आदि घिनकारी पदार्थ आदि न बहते हों सिवाय माँ के दूध को छोड़कर। मोही, अज्ञानी, कामी इस सत्य को समझकर भी नही समझना चाहता। कुछ भव्य आत्मा जिनकी होनी अच्छी है वे इस सत्य को जानकर पीछे हठ जाते हैं। यह शरीर गोरी चमड़ी तो गोबर पर लगे चांदी के वर्क के समान है जिससे प्रीति करना कदापि उचित नहीं। संसारी जीवों की दशा का वर्णन गुरुदेव ने इस दृष्टांत के द्वारा किया बात उस समय की है जब घरों से महिलाएं मैला उठाने आती थी। एक महिला मैले की टोकरी उठाकर जा रही थी, रास्ते में उसे मखमल का सुन्दर टुकड़ा पड़ा मिलता है, वह उसे उठाकर मैले की टोकरी पर डाल देती है, कुछ मनचले उसका पीछा करने लगते हैं यह मानकर कि इतने सुन्दर कपड़े के नीचे अवश्य ही माल छिपा होगा। वह महिला
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy