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________________ 70 अणुव्रत सदाचार और शाकाहार निग्रंथ गुरु के लिए महल, श्मशान, शत्रु, मित्र, प्रहार करने वाला पूजा अर्चना करने वाला सभी समान होते हैं वे सभी के साथ सम्यक व्यवहार करते हैं। हम श्रावक उनके परम उपकार को भुला नहीं सकते। इसलिए भक्ति से प्रेरित होकर यह राष्ट्र गौरव का पुरुस्कार गुरु चरणों में समर्पित कर रहे हैं। इससे यह सम्मान भी शीर्ष तक पहुँच गया और पाने वाले की महानता के आगे नतमस्तक होकर धन्यता का अनुभव कर रहा है। माता है महिमामय भगवान के जन्म कल्याणक के अवसर पर गुरुदेव माता की महिमा को बता रहे थे कि तीर्थंकर प्रभु के दर्शन का प्रथम सौभाग्य सर्व प्रथम तीर्थंकर की माता को ही मिलता है। इन्द्रों में यह सौभाग्य सौधर्म इन्द्र की इन्द्राणी शची देवी को ही मिलता है। माता ही वह प्रथम शिक्षक है जो बच्चे को संस्कारित करती है और उसके जीवन को आत्म कल्याण के मार्ग पर अग्रसित करती है। इसीलिए सभी धर्मों में मातृशक्ति को अग्रणी स्थान प्राप्त है। विद्या की देवी सरस्वती को जो स्थान प्राप्त है, जो श्री की अधिष्ठात्री लक्ष्मी को प्राप्त है वह देवताओं को भी प्राप्त नहीं। लेकिन आज यह मातृशक्ति, महिला शक्ति अपनी गरिमा को भूलकर गलत आचरण करके अपनी पावन छवि को बट्टा लगा रही है। ___ महामुनिराज मानतुंगाचार्य ने भी माता की महिमा का गुणगान भक्तामर स्त्रोत्र में किया है। स्त्रीणां शतानि सतशो जनयन्ति पुत्रान..... | अर्थात् तीर्थंकर जैसे सुत को जन्म देने वाली माता लाखों करोड़ों में एक ही होती है। तीर्थंकर जैसा एक सुत ही सौ के बराबर होता है। तीर्थंकर आदिनाथ भगवान की नजर में लड़का-लड़की समान थे प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान ने कभी लड़का लड़की में भेद नहीं किया उन्होंने अपने पुत्रों को शिक्षित किया शासन व्यवस्था में निपुण किया तो अपनी पुत्री ब्राह्मी को ब्राह्मी लिपि का ज्ञान दिया जो दुनियाँ की प्राचीनतम लिपि है। गुरुदेव ने मुख्यमंत्री महोदय को भी कहा "माना कि आज के जमाने में यह लिपि प्रचलन में नहीं है लेकिन हमें अपनी संस्कृति रक्षार्थ इसके प्रसार हेतु ईमानदारी पूर्ण प्रयास करते रहने चाहिए। उनकी दूसरी पुत्री सुन्दरी को अंकविद्या गणित का ज्ञान दिया। शून्य का आविष्कार करने वाले आदि प्रभु ही थे हमें अपनी समृद्ध संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। हम अपने आचरण पर ध्यान देकर प्रभु महावीर की शिक्षाओं के अनुरूप जीवन को ढालकर, खोटे विचारों से दूर रहकर सम्यक्त्व के पथ पर जा सकते हैं और इसी सम्यक् पुरुषार्थ के द्वारा प्रभु महावीर की तरह मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं।
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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