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________________ वात्सल्यतामयी सरस एवं सरल भाषा में सम्बोधन लोगों के बहुत ही लोकप्रिय है। यह आपके प्रखर वक्तव्य और जनकल्याणकारी सम्बोधन का प्रतिफल है। आपने इस कति के माध्यम से जनसामान्य लोगों का न केवल जैन धर्म तथा दर्शन के विविध पक्षों की जानकारी दी है अपितु अहिंसा, अपरिग्रह, सदाचार, ब्रह्मचर्य, श्रावकाचार, श्रमणाचार, शाकाहार, दस-धर्म आदि का बोध कराया है। समाज में व्याप्त जटिल-से-जटिल बुराईयों को भी आपने अपने सम्बोधन के माध्यम से दूर करने का प्रयत्न किया है। चाहे वह नशाखोरी हो, आतंकवाद हो, वेश्यावृत्ति आदि। इतना ही नहीं आपने अपने सम्बोधन में महापुरूर्षों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के माध्यम से उन जैसा बनने की बात कही है, उन के पदचिन्हों पर चलने को प्रेरित किया है। __मैं आचार्य प्रवर के श्रीचरणों को बारम्बार नमोस्तु करते हुए कृतज्ञता करती हूं कि आपने प्राच्यविद्या एवं जैन संस्कृति संरक्षण संस्थान के माध्यम से मुझे उक्त पुस्तक को प्रकाशित करने का अवसर दिया। मैं आपके प्रति पुनः कृतज्ञता ज्ञापित करती हूं। मैं आपके प्रति नतमस्तक हूं। उक्त पुस्तक को प्रकाशित करने में पुस्तक के सम्पादक एवं साहित्यकार प्रो. लोकेशजी जैन का अथक सहयोग रहा मैं आपके प्रति आभारी हूं। आपने न केवल पुस्तक का सम्पादन किया अपितु पुस्तक को प्रकाशित करने में आर्थिक सहयोग भी प्रदान किया जिसके फलस्वरूप यह पुस्तक आपके हाथ में है। पुस्तक के मुद्रण एवं शब्द संयोजन श्री शरद जैन सुधान्शु के प्रति आभारी हूं| आप मुद्रण सम्बन्धि कठिन से कठिन कार्य को सरल और सुगम बनाकर कार्य को सम्पादित करते है। पाठकों एवं श्रावकसमाज के लिए यह पुस्तक बहुत ही उपयोगी है। मैं आप सभी पाठकों से अनुरोध करती हूं कि इस पुस्तक का पठन–पाठन करें और अपने परिवारजन, मित्रगण आदि को पढ़ने के लिए प्रेरित करें। आचार्यश्री द्वारा प्रदत्त इसी आशा के साथ.... - डॉ. मनीषा जैन निदेशक प्राच्यविद्या एवं जैन संस्कृति संरक्षण संस्थान, लाडनूं
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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