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________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार 61 यदि देश में जैन नामधारी नहीं अपितु जिनधर्म के पालक जिन धर्म में सच्ची श्रद्धा रखने वाले लोगों की संख्या बढ़ती है तो देश में बूचड़ खानों की जगह गौशालाओं की स्थापना होती रहेगी, दया करुणा व प्रेम का सरोवर बहता रहेगा, मूक पशु-पक्षियों को अभय मिलता रहेगा। बिना किसी गणितीय हिसाब-किताब के जरूरतमंदों को यथायोग्य यथासमय मदद मिलती रहेगी तब न कोई आपस में लड़ेगा, न कोई वैर भाव रखेगा और न ही कोई किसी से द्वेष करेगा अपित वह जैन देश, समाज व स्वयं के निर्माण में सदा तत्पर रहेगा। जैन संस्कृति सदाचार, शाकाहार, व्यसन मुक्ति व कमजोरों का सहारा बनने की संस्कृति है किन्तु कायरता की, उदासीनता की कदापि नहीं। आज आए दिन जैन साधुओं पर हमले हो जाते है क्या है ये सब? अरे जैन समाज को इतना सशक्त बनाओ कि कोई इस तरफ आँख उठाने की जुर्रत ही ना करे, खुले आम कत्ल की साजिश ना करे, पशु पक्षियों का कत्ले आम ना करे। जैन धर्म न तो हिंसा में धर्म मानता है और न ही किसी की हिंसा का किसी भी रूप में समर्थन करता है वह मानव मात्र के लिए ही नहीं अपितु प्राणिमात्र के उत्कृष्ट जीवन की कामना करता है एवं तदनुरूप व्यवस्था करता है। जैन समाज की विकृ तियां खत्म हों, विलासिता की जगह हम जरूरतमंदों को ऊपर उठाने पर खर्च करें, साधनों का मन वचन काय से सदुपयोग करें तो अत्यन्त संतोष व सकन मिलेगा। जैन धर्म तो यहाँ तक कहता है कि हमारा प्रतिद्वन्दी भी हमारा शत्रु नहीं है वह अपने ढंग से प्रगति करे और हम अपने ढंग से किन्तु रहें प्रेम से, मिलजुलकर तथा दिगंबर संतो द्वारा स्थापित कठोर साधना के मार्ग को अपने जेहन से एक पल के लिए भी विस्मृत न होने दें क्योंकि यही एकमात्र आत्म कल्याण का मार्ग है, सभी को इसी तरफ लौटना पड़ेगा। भोग-परिग्रह आसक्ति में कभी भी मुक्ति नहीं हो सकती। आज पढ़े लिखे लोग शाकाहार, अहिंसा के व्रत पालन में तरह तरह की मजबूरियां गिनाते हैं लेकिन हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी के व्रत संकल्प का उदाहरण अनुकरणीय है जो अमेरिका में रहते हुए भी नवरात्रि के उपवास कर सके तो हम क्यों शाकाहारिता और रात्रि भोजन त्याग का व्रत पालन दृढ़ता के साथ नहीं कर सकते? आज पश्चिमीकरण के प्रभाव में हम अपने संस्कारों से इतने भटक गए हैं भ्रमित हैं कि हरा निशान देखकर ही किसी डब्बा बंद वस्तु को शाकाहारी एवं सेवन योग्य मान लेते हैं। वस्तुतः यदि उसके मिश्रण को ध्यान से पढ़ें तो हम पायेंगे कि विदेशी वस्तुओं में कई न खाने योग्य अभक्ष्य पदार्थ मिले हैं। अतः संभव हो वहाँ तक इनके उपयोग से बचना चाहिए तथा घर में बनी वस्तुओं का ही उपयोग करना चाहिए।
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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