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________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार की बात है कि हम प्रमादवश, मानवश, कषायवश, दुष्टतावश अपने इन उद्धारकों का सम्मान करना, इनकी परवाह करना भूल जाते हैं, इनको हम बे-सहारा छोड़ देते हैं और धार्मिक बनने का दिखावा करते हैं। अरे आत्मार्थिओ! यदि तुम मूर्ति पूजा का दशासं भी इन माता-पिता और गुरु की सेवा में समर्पित कर दोगे तो अपने जीवन को सार्थक बना लोगे । 60 इस सदाचार की संस्कृति के वाहक हमारे पूर्वाचार्य पूज्य कुन्दकुन्द स्वामी, समन्तभद्राचार्य आदि तो थे ही किन्तु वर्तमान के आचार्य श्री आदिसागर अंकलीकरजी महाराज, आचार्य श्री शांतिसागरजी महाराज तथा आचार्य श्री महावीरकीर्तिजी महाराज आदि ने सदाचार - अहिंसा की संस्कृति के वाहक बनकर अपना सारा जीवन इसकी रक्षा व प्रचार-प्रसार में लगा दिया और इस नेक मकसद से विकट परिस्थितियों में पीछे नहीं हटे। इन वीतरागी गुरुओं ने विषमतम परिस्थितियों में भी अपने ध्येय, कठोर साधना, तपस्या और सदाचार रूपी सकल संयम चरित्र का दामन नहीं छोड़ा तथा समाज के विध्न प्रदाता संतोषियों द्वारा किए गए उपसर्गों को सहते हुए भी इस अहिंसक संस्कृति के आदर्शों को जन जन तक पहुँचा कर जैन धर्म को जन जन का धर्म बनाने में मील का पत्थर बने । जैन धर्म को दक्षिण से उत्तर पूर्व और पश्चिम की तरफ निकालने हेतु भरसक धर्म प्रभावना करते हुए वात्सल्यमूर्ति आचार्य विमलसागरजी तथा तपस्वी सम्राट आचार्य श्री सन्मति सागर जैसे अनमोल रत्न खोजकर देकर इस मानव समुदाय पर बड़ा उपकार किया। मुगल काल में दिगंबर जैन धर्म पर इतना दबाब न बना कि उनके अनुयायियों को वस्त्र आदि धारण करने पड़े। दक्षिण के भट्टारक जी इसी परंपरा में रहते हुए जैनधर्म का रक्षण करते रहे उनके द्वारा स्थापित केन्द्र आत्मकल्याणकारी संस्कारों की रक्षा केन्द्र बने। गुरुदेव कहते हैं जैन संख्या बल में भले ही कम किन्तु इस कम का गम मत करो। आदर्श की उत्तमता सभी पर भारी पड़ती है । ऐसे कई उदाहरण इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर दर्ज हैं जहाँ जैनों ने देश हित में बिना किसी हिचक के अपने खजाने खोल दिए, बहुत कुछ नुकसान सहकर भी सोने की तरह दमकते रहे और अपनी कांति से जरूरतमंदों का अवलंबन बनते रहे। इसलिए हे भव्यजीवो! अपनी अच्छाइयों को बढ़ाते हुए इस अहिंसक जीवदया के फलक का विस्तार करो संकुचित मत बनो । जिस प्रकार थोड़े से फूल बहुत सारी खुश्बु बिखेर देते हैं उसी तरह हम भी इस महान संस्कृति के वाहक बने । सच ही कहा है कि "दायरा ए दिल नहीं किन्तु दरिया दिल बनो"
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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