SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार हमारे लिए उपयोगी बन जाए। कबीर दासजी संसार की असारता बताते हुए कहते हैं कि 58 "चलती चक्की देखकर दिया कबीरा रोय । दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय ।" अर्थात् जन्म-मरण को संसार रूपी दो पाटों के बीच में पड़कर कोई भी साबुत नहीं बच सका है। अतः समय रहते सँभलो और सदगुरु की शरण हो जाओ। वे अपने पुत्र कमाल के माध्यम से वे पुनः कहते हैं कि "चलती चक्की देखकर दिया कमाल हँसाय । जो कीली के पास रहे ताकू कछू ना थाय ।" अर्थात् लेकिन जो सद्गुरु रूपी कील के आसपास रहता है, उनकी शरणागत हो जाता है उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता । आचार्य अमितगतिजी से किसी ने प्रश्न किया कि यदि मूर्च्छा परिग्रह है तो वह ममत्व तो सभी के होता है अर्थात् सभी परिग्रही हैं। आचार्य भगवन् कहते हैं कि नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है। मुनिराजों के 10 गुणस्थान तक ममत्व पाया जाता है। लेकिन मुनिराज व श्रावक दोनों के भाव निमित्त के संयोग से अलग अलग होते हैं। उदाहरण के लिए किसान जो अहिंसक रूप आजीविकोपार्जन करता है, सभी का अन्नदाता बनता है उसके परिणाम शुभ रहते हैं वहीं दूसरी ओर एक माछीमार जो हिंसक आजीविका में रत है उसके परिणाम अशुभ ही रहते हैं। परिणामों की तीव्रता और मंदता से बंधी तीव्रता - मंदता स्थापित होती है । इसलिए आप सभी भी अपना जनमदिन अवश्य मनाएं किन्तु उसमें रुचि नहीं रखें, जीवन को मोक्षमार्ग, धर्मध्यान और मानवता के समर्पित करें, दूसरों के लिए जीवन समर्पित करें तभी इसकी सार्थकता है। इस संदेश को अपने जीवन में अच्छी तरह उतार लो "अपने दुखों में रोने वालो, मुस्कराना सीख लो, औरों के दुख-दर्द में काम आना सीख लो । जो खिलाने में मजा है वह खाने में नहीं, जिंदगी में दूसरों के काम आना सीख लो।" क्योंकि वृक्ष तो बहुत हैं किन्तु उनमें से प्रसिद्ध बहुत थोड़े ही होते हैं, फूल तो बहुत होते हैं किन्तु उनमें से प्रसिद्ध बहुत थोड़े ही होते हैं। जो फल देते हैं, वे वृक्ष ही प्रसिद्ध होते हैं तथा जो फूल खुश्बु देते हैं, वे ही प्रसिद्ध होते हैं। और लोग वे ही प्रसिद्ध होते हैं जो दूसरों के काम आते हैं। सच में मनुष्य वही है जो दूसरों के काम आता है जिसमें दूसरों के प्रति संवेदना है। आज सन्मति समवशरण में एक मूकवधिर विद्यालय के 65 बच्चे और उनके साथ शिक्षिका अनूप बहन आचार्य भगवन् के आशीर्वाद हेतु पधारे । आचार्यश्री ने समाज को संबोधित करते हुए कहा कि सभी को किसी न किसी
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy