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________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार 57 __28 बर्थ डे, व्यर्थ डे न बन जाय इसका रखें ध्यान _ आचार्यश्री सुनीलसागरजी महाराज का 42वां अवतरण दिवस पर विशेष व्याख्यान ___ आचार्य भगवन् श्री सुनीलसागरजी महाराज ने आज अपने 42वें अवतरण दिवस पर परमपूज्य गुरुदेव तपस्वी सम्राट आचार्य श्री सन्मति सागरजी को श्रद्धापूर्वक नमन करते हुए कहा कि गुरु का आशीष शिष्यों को ऊँचा उठा देता है। लोगों की पलकों पर तो ठीक, सिद्धालय में बिठा देता है।। गुरु कृपा से उनका जीवन सफल हो गया, सार्थक हो गया। वीतरागी गुरु के सानिध्य में सभी काम बन जाते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि संसारी जीव उनसे सांसारिक काम पूर्ण होने की आकांक्षा कर बैठता है जबकि मोक्षमार्गी जीव उनका सानिध्य पाकर अपने परिणाम विशुद्धि की उत्कृष्टता को पाने की कामना व पुरुषार्थ करने का आशीर्वाद मांगता है। आचार्य भगवन् के जन्म दिन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अनुज श्री पंकजभाई मोदी आशीर्वाद लेने हेतु पधारे। उन्होंने कहा कि जैन धर्म का सानिध्य व संस्कार उन्हें बचपन से ही मिला जब अपने गांव वडनगर में रहते थे इसीलए आज भी महान संत के दर्शन का सुअवसर प्राप्त हुआ। इस अवसर पर गांधीनगर के विधायक शंभुजी, कडी के विधायक सोलंकीजी, एडीशनल कलेक्टर, यंगलीडर की प्रधान सम्पादिका नीलम जैन, पुलिस प्रशासन से जुड़े आला अधिकारियों ने सन्मति समवशरण में पधारकर तथा गुरुवाणी का श्रवण कर अपने जीवन को कृतार्थ महसूस किया। आचार्यश्री ने जीवन की नश्वरता को समझाते हुए कहा कि जीवन को परोपकार व आत्मकल्याण की दिशा में ले जाकर ही सार्थक बनाया जा सकता है। महत्वपूर्ण यह नहीं कि हम कितना जिए अपितु जरूरी यह है कि हम कैसे जिए हैं। प्रायः जन्म दिवस मनाते समय हम भव का अभिनंदन करते हैं जो सही नहीं है। जन्म मरण और जरा अर्थात् बुढ़ापा दुःख के कारण हैं हमें मनुष्य जन्म पाकर इस तरह से पुरुषार्थ करना है कि इसके बंधन से मुक्त हो जाएं। इसलिए इस तन से इस जीवन से सांसारिक सुख की कामना करना अच्छी बात नहीं है। हमें तो जन्ममरण का नाश करने की भावना भानी चाहिए। हे भव्य जीवों! भव के अभाव का अनुभव करने में ही बुद्धिमानी है। __ आचार्य अमितगतिजी योगसार में लिखते हैं कि घर-गृहस्थी में अच्छा लगना भव को बढ़ाने की निशानी है। आत्मकल्याण हेतु कुछ ऐसा हो कि जीवन
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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