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________________ Tattvārthasūtra अर्थ - गणधरों ने सूत्र उसे कहा है जो अल्पाक्षर हो, असंदिग्ध हो, सारवद् हो, गूढनिर्णय हो, निर्दोष हो, हेतुमत् हो और तथ्यपूर्ण हो। सूत्र का यह लक्षण बहुत ही महत्त्वपूर्ण है और आचार्य उमास्वामी प्रणीत 'तत्त्वार्थसूत्र' पर पूरी तरह खरा उतरता है। सूत्र के उक्त 7 विशेषणों को भी हमें गंभीरतापूर्वक समझना चाहिये। टीकाकार आचार्यों ने इनका बहूत विस्तारपूर्वक विवेचन किया है। जैसे कि 'निर्दोष' विशेषण में समझाया है कि सूत्र बत्तीस दोषों से रहित होना चाहिए और फिर उन बत्तीस दोषों को पृथक्-पृथक् सोदाहरण स्पष्ट भी किया है, जिसे यहाँ हम विस्तारभय से नहीं लिखते हैं, परन्तु हमें उन सबको भलीभाँति समझना चाहिए, तभी 'तत्त्वार्थसूत्र' का मर्मोद्घाटन होगा। 'तत्त्वार्थसूत्र' की महिमा वचन-अगोचर है। लोग कहते हैं कि उसमें 'गागर में सागर' भरा है, पर मैं कहता हूँ कि उसमें तो 'सरसों के दाने में सागर' समाया है। ___ 'तत्त्वार्थसूत्र' इतना महान् और प्रामाणिक शास्त्र है कि प्राचीनकाल में तो 'शास्त्र' का अर्थ ही 'मोक्षशास्त्र' लगाया जाता था। इसी के आधार पर अनेकानेक शास्त्रों की रचना हुई है। 'अज्झयणमेव झाणं' को चरितार्थ करता हुआ, कोई भी व्यक्ति एक इसी ग्रन्थ के अध्ययन से सम्पूर्ण श्रुतज्ञान को सरलता से प्राप्त कर सकता है। 'तत्त्वार्थसूत्र' की विषयवस्तु भी अद्भुत है, इसमें प्रयोजनभूत तत्त्वों का सर्व विषय आ गया है। यथा - पढमचउक्के पढम, पंचमए जाण पोग्गलं तच्चं । छट्ठ-सत्तम आसव, अट्ठमए बंध णादव्वो ॥ णवमे संवर-णिज्जर, दहमे मोक्खं वियाणाहि । इह सत्ततच्च भणिदं, जिणवरपणीदं दहसुत्तं ॥ अर्थ - प्रथम के चार अध्यायों में प्रथम अर्थात् जीव-तत्त्व का वर्णन है, पाँचवें अध्याय में अजीव-तत्त्व का वर्णन है, छठे-सातवें अध्यायों में (vi)
SR No.034448
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay K Jain
PublisherVikalp Printers
Publication Year2018
Total Pages500
LanguageHindi, Sanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size5 MB
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