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________________ पूर्वभूमिका UA पूर्वभूमिका पहले हम अपनी अनादि की कहानी देखते हैं। उसके लिये हमें प्राथमिक काल-गणना समझना आवश्यक है। हम काल को सेकण्ड, मिनट, घण्टा इत्यादि रूप से जानते हैं। परन्तु हमारी कहानी समझने के लिये हमको उपमा काल, जो असंख्यात वर्षों का होता है, उसे जानना आवश्यक है। इसलिये पहले हम उपमा काल की व्याख्या करते हैं। उसमें श्वेताम्बर-दिगम्बर आम्नाय में थोड़ा अन्तर हो सकता है, इसलिये यहाँ बताई गई व्याख्या से कोई सहमत न भी हो तो भी दिक्कत नहीं है; आप इसे शब्द या अंक के रूप में ग्रहण मत करना और इस व्याख्या के खरेखोटेपन के विवाद में भी न पड़कर उस काल-गणना का भाव भासन अवश्य करना, ऐसा आप सबसे हमारा नम्र निवेदन है। (अनुमानित) ६००० किलोमीटर लम्बा, उतना ही चौड़ा और उतना ही गहरा कुंआ (पल्य) बनाकर उसको उत्तम भोगभूमि के सात दिन के जन्मे भेड़ के केश (अनुमानित अपने केश के ५१२ कतले करने जितना) के छोटे-छोटे टुकड़ों (जिसके दो टुकड़े नहीं हो सकते ऐसे बारीक टुकड़ों) से लूंसकर भरना है। हर १०० वर्ष बाद उस कुँए से एक केश का टुकड़ा निकालना है। इस तरह से केश का एक-एक टुकड़ा निकालते-निकालते जब वह कुँआ खाली हो जाये तो उतने काल को एक व्यवहार पल्योपम कहते हैं। उस एक व्यवहार पल्योपम को असंख्यात से गुणा करने पर जो संख्या आयेगी, उतने काल को एक उदार पल्योपम कहते हैं। उस एक उदार पल्योपम को असंख्यात से गुणा करने पर जो संख्या आयेगी, उतने काल को एक अद्धो पल्योपम कहते हैं। ऐसे एक करोड़ अद्धो पल्योपम को १० करोड़ अद्धो पल्योपम से गुणा करने पर जो संख्या आयेगी, उतने काल को एक सागरोपम कहते हैं। इस प्रकार एक करोड़ सागरोपम को २० करोड़ सागरोपम से गुणा करने पर जो संख्या आयेगी, उतने काल को एक कालचक्र कहते हैं। ऐसे अनन्तानन्त कालचक्र बीतने पर एक पुद्गल परावर्तन काल का अनन्तवाँ हिस्सा व्यतीत होता है। इतना बड़ा है एक पुद्गल परावर्तन काल। एक पुद्गल परावर्तन काल के अनन्तवें भाग में अनन्तानन्त कालचक्र होते हैं।
SR No.034446
Book TitleSamyag Darshan Ki Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailendra Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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