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________________ साधु कुछ काल तक रख कर बाद में वापिस लौटा देते हैं)। पीढ-फलग-सेज्जासंथारएणं चौकी, पट्टा, शय्या के लिए संस्तारक तृण आदि का आसन। ओसह-भेसज्जेणं औषध और भेषज (कई औषधियों के संयोग से बनी हुई गोलियाँ) आदि । पडिलाभेमाणे देता हुआ (बहराता हुआ)। विहरामि सचित्त-निक्खेवणया साधु को नहीं देने की बुद्धि से अचित्त वस्तु को सचित्त जल आदि पर रखना। सचित्त-पिहणया साधु को नहीं देने की बुद्धि से अचित्त वस्तु को सचित्त से ढंक देना। कालाइक्कमे भिक्षा का समय टाल कर भावना भायी हो। परववएसे आप सूझता होते हुए दूसरों से दान दिलाया हो। मच्छरियाए मत्सर भाव से दान दिया हो। बड़ीसंलेखना का पाठ अह भंते ! इसके बाद हे भगवान ! अपच्छिम-मारणंतिय- सबके पश्चात् मृत्यु के समीप होने संलेहणा वाली संलेखना अर्थात् जिसमें शरीर, कषाय, ममत्व आदि कृश (दुर्बल) किये जाते हैं, ऐसे तप विशेष के। झूसणा संलेखना का सेवन करना। आराहणा संलेखना की आराधना। {78} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र
SR No.034373
Book TitleShravak Samayik Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwa Mehta
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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