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________________ सरणगइपइड्डाणं अप्पsिहय वरनाणदंसणधराणं विट्टछा जाणं जावयाणं तिन्नाणं तारयाणं बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं सव्वण्णूणं सव्वदरिसीणं दूसरों को कर्मों से मुक्त कराने वाले । सब कुछ जानने देखने वाले सर्वज्ञ, सर्वदर्शी । सिव-मयल-मअ-मणंत निरुपद्रवी, अचल, रोग रहित, अनंत । मक्खय-मव्वाबाह मपुणरावित्ति सिद्धिगड नामधेयं ठाणं संपत्ताणं दु:खी प्राणियों को आश्रय देने वाले सुगति में सहायक, पृथ्वी के समान आधारभूत । पुनः नष्ट नहीं होने वाला अप्रतिहत । श्रेष्ठ ज्ञान, दर्शन के धारक । छद्मस्थता से रहित । स्वयं रागद्वेष के विजेता । दूसरों को जिताने में सहायता देने वाले। स्वयं संसार सागर से तिरने वाले। दूसरों को तिराने वाले । स्वयं बोध पाये हुए। दूसरों को बोध कराने वाले । स्वयं कर्मों से मुक्त । णमो जिणाणं जिअभयाणं ठाणं संपाविउकामाणं अक्षय, अव्याबाध । पुनरागमन रूप वृत्ति से रहित । सिद्ध गति नामक स्थान को प्राप्त सिद्ध भगवान । भय विजेता जिनेश्वरों को नमस्कार हो । स्थान को प्राप्त करने वाले अरिहन्त भगवान । {55} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र
SR No.034373
Book TitleShravak Samayik Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwa Mehta
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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