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________________ अक्षर, ह्रस्व, दीर्घ, न्यूनाधिक, विपरीत पढ़ने में आया हो तो अनन्त सिद्ध केवली भगवान की साक्षी से देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ॥ मिथ्यात्व का प्रतिक्रमण, अव्रत का प्रतिक्रमण, प्रमाद का प्रतिक्रमण, कषाय का प्रतिक्रमण, अशुभ योग का प्रतिक्रमण न पाँच प्रतिक्रमणों में से कोई प्रतिक्रमण नहीं किया हो या अविधि से किया हो तथा ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप सम्बन्धी कोई दोष लगा हो तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छामि दुक्कडं । गये काल का प्रतिक्रमण, वर्तमान काल की सामायिक, आगामी काल के पच्चक्खाण जो भव्य जीव करते हैं, कराते हैं, करने वाले का अनुमोदन करते हैं उन महापुरुषों को धन्य है, धन्य है । सम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा और आस्था, ये पाँच व्यवहार समकित के लक्षण हैं, इनको मैं धारण करता हूँ । देव अरिहन्त, गुरु निर्ग्रन्थ, केवली भाषित दयामय धर्म ये तीन तत्त्व सार, संसार असार भगवन्त महाराज आपका मार्ग सच्चं, सच्चं, सच्चं थवथुई मंगलं । दोहा आगे आगे दव बले, पीछे हरिया होय । बलिहारी उस वृक्ष की जड़ काट्याँ फल होय ।। , इसके बाद बायाँ घुटना खड़ा करके दो बार नमोत्थुणं का पाठ बोलें, फिर तिक्खुत्तो के पाठ से तीन बार वन्दना करें । प्रतिक्रमण पूर्ण होने पर स्वधर्मी भाई परस्पर क्षमायाचना करें। इसके बाद चौबीसी, स्तवन आदि बोलें । ।। सविधि प्रतिक्रमण सूत्र समाप्त ।। {43} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र
SR No.034373
Book TitleShravak Samayik Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwa Mehta
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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