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________________ एक वर्ष में यथा सुख समाधि ( करूँगा/करूँगी। 10. रात्रि का 4 प्रहर का संवर ( 11. तीन मनोरथ का चिन्तन करूँगा / करूँगी । 12. प्रतिदिन सागारी संथारा करूँगा /करूँगी । आगार ) संवर जीवन पर्यंत तक ) करूँगा/करूँगी। असह्य बीमारी, वृद्धावस्था, यात्रा इसी प्रकार कोई लौकिक कार्य हो तो आगार है। देशावकाशिक व्रत की शिक्षाएँ 1. संपूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन 2. सर्वथा हरी का त्याग 3. सर्वथा कच्चे पानी का त्याग 4. चौविहार का पालन 5. सर्वथा सचित्त का त्याग इन पाँचों का पालन कर सके तो बहुत उत्तम, नहीं तो इनमें से हर एक नियम का प्रतिदिन पालन करना चाहिए । अनादि काल से परवशता के कारण विविध पदार्थों का भोग उपभोग किया है। अब अपनी इच्छाओं को वश में कर सातवें व्रत में मर्यादा की है। हम संकल्प करें तो उससे भी कम हमारा काम चल सकता है। अतः एक अहोरात्र पर्यन्त द्रव्य क्षेत्र की मर्यादा करके आत्मिक सुख का अनुभव करें। ग्यारहवाँ स्थूल पौषध शिक्षाव्रत की प्रतिज्ञा द्रव्य से - समकित सहित चारित्र गुण की विशेष पुष्टि करने तथा स्थिरता बढ़ाने के लिए मैं उपवास सहित प्रतिपूर्ण पौषध व्रत की 53 प्रतिपूर्ण पौषधव्रत
SR No.034372
Book TitleShravak Ke Barah Vrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangla Choradiya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2015
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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