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________________ दूसरा स्थूल मृषावाद विरमण व्रत सत्य अणुव्रत की प्रतिज्ञा द्रव्य से- मैं क्रोध, लोभ, हास्य और भय वश ऐसा असत्य वचन नहीं बोलूँगा, जिससे लोक में निंदा हो, पंचों में अप्रतीति हो, कुलजाति-देश और धर्म में अशांति फैले, कलंकित होना पड़े, ऐसा मोटा झूठ नहीं बोलूँगा/बोलूँगी। क्षेत्र से मर्यादित क्षेत्र में स्थूल असत्य बोलने का तथा उसके बाहर सर्वथा असत्य का त्याग करता हूँ/करती हूँ। काल से- जीवन पर्यन्त उक्त प्रकार से असत्य बोलने का त्याग करता हूँ/ करती हूँ। भाव से - शुद्ध स्वरूप में स्थिर बनने के लिए विरुद्ध प्रवृत्ति नहीं करूँगा/करूँगी। दो करण तीन योग से। सत्य अणुव्रत के अतिचार (दोष) 1. सहस्सब्भक्खाणे- बिना विचारे किसी को आघात पहुँचे ऐसा वचन बोलना । 2. रहस्सब्भक्खाणे- किसी की गुप्त बात प्रकट करना। 3. सदार मंत भेए-स्त्री / पुरुष का मर्म प्रकाशित करना। 4. मोसोवएसे - जानबूझकर झूठा उपदेश, खोटी सलाह देना । 5. कूडलेहकरणे- झूठा लेख, दस्तावेज, खतपत्रादि लिखना । मृषावाद विरमण व्रत का विषय 1. कन्नालीए - वर वधु के संबंध में अच्छे को बुरा और बुरे को अच्छा यानी उनके गुण अवगुण, उम्र इत्यादि के संबंध में झूठ नहीं बोलना और न ही बुलवाना। 2. गोवालीए - गाय, बैल आदि पशुओं के गुणदोष आदि के संबंध में झूठ नहीं बोलना और न बुलवाना । 13
SR No.034372
Book TitleShravak Ke Barah Vrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangla Choradiya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2015
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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