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________________ (31) इकत्तीसवें बोले-सिद्ध भगवान के इकत्तीस गुणआठ कर्म की इकत्तीस प्रकृतियाँ नष्ट होने से ये गुण प्रकट होते हैं। वे इकत्तीस प्रकृतियाँ इस प्रकार हैं ज्ञानावरणीय कर्म की पाँच प्रकृति-1. मतिज्ञानावरणीय 2. श्रुतज्ञानावरणीय 3. अवधिज्ञानावरणीय 4. मन:पर्यायज्ञानावरणीय और 5. केवलज्ञानावरणीय। दर्शनावरणीय कर्म की नौ प्रकृति-1. निद्रा 2. निद्रा-निद्रा 3. प्रचला 4. प्रचला-प्रचला 5. स्त्यानगृद्धि 6. चक्षुदर्शनावरणीय 7. अचक्षुदर्शनावरणीय 8. अवधिदर्शनावरणीय और 9. केवलदर्शनावरणीय। वेदनीय कर्म की दो प्रकृति-1. सातावेदनीय और 2. असातावेदनीय। मोहनीय कर्म की दो प्रकृति-1. दर्शनमोहनीय और 2. चारित्र मोहनीय। आयु कर्म की चार प्रकृति-1. नरकायु 2. तिर्यंचायु 3. मनुष्यायु और 4. देवायु। नामकर्म की दो प्रकृति-1. शुभनाम और 2. अशुभनाम । | 861
SR No.034370
Book TitleRatnastok Mnjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2016
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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