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________________ 5. दृष्टि विपर्यास दण्ड-शत्रु जानकर मित्र को मार डालना। 6. मृषावाद दण्ड-असत्य भाषण करना। 7. अदत्तादान दण्ड-चोरी करना। 8. अध्यात्म दण्ड-मन में दुष्ट विचार करना। 9. मान दण्ड-गर्व करना। 10. मित्र दण्ड-माता-पिता और मित्र वर्ग को अल्प अपराध पर भी भारी दण्ड देना। 11. माया दण्ड-कपट करना। 12. लोभ दण्ड-लोभ करना। 13. ईर्यापथिक दण्ड-सयोगी वीतरागी को लगने वाली क्रिया। (14) चौदहवें बोले-जीव के चौदह भेद1. सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त। 2. सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त । 3. बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त। 4. बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त । 5. बेइन्द्रिय अपर्याप्त। 6. बेइन्द्रिय पर्याप्त । 7. तेइन्द्रिय अपर्याप्त। 8. तेइन्द्रिय पर्याप्त । 9. चौरेन्द्रिय अपर्याप्त। 10. चौरेन्द्रिय पर्याप्त। 11. असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त । 12. असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त। 13. संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त। 14. संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त ।
SR No.034370
Book TitleRatnastok Mnjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2016
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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