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नौवीं प्रतिमा भी सात अहोरात्रि (दिन-रात) की है। इतना विशेष कि इन तीन आसन में से एक आसन करे-दण्ड आसन, लकुट आसन या उत्कट आसन (दोनों पैर टिकाकर बैठना)।
दसवीं प्रतिमा भी सात अहोरात्रि (दिन-रात) की है। इतना विशेष कि इन तीन आसन में से एक आसन करे-गोदुह आसन, वीरासन और अम्बकुब्ज (आम्रकुब्ज) आसन।
गोदहासन में पूरे शरीर को दोनों पाँवों के पंजों पर रखना होता है। इसमें जंघा, उरु आपस में मिले होते हैं। दोनों नितम्ब एड़ी पर टिके रहते हैं। वीरासन में पूरा शरीर दोनों पंजों के आधार पर तो रखना पड़ता है, किंतु इसमें नितम्ब एड़ी से कुछ ऊपर उठे हुए रखने पड़ते हैं तथा जंघा और उरु में भी कुछ दूरी रखनी पड़ती है। इस प्रकार कुर्सी पर बैठे व्यक्ति के नीचे से कुर्सी निकाल देने पर जो आकार-अवस्था उसकी होती है, वैसा ही लगभग इस आसन का आकार समझना चाहिए।
आम्रकुब्जासन में भी पूरा शरीर तो पैरों के पंजों पर रखना पड़ता है, घुटने कुछ टेढ़े रखने होते हैं, शेष शरीर का सम्पूर्ण भाग सीधा रखना पड़ता है। जिस प्रकार आम ऊपर से गोल और नीचे से कुछ टेढ़ा होता है, इसी प्रकार यह आसन किया जाता है।
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