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8. प्रतिमाधारी साधु, तीन प्रकार की शय्या ले सकते हैं-1. पत्थर की शिला 2. लकड़ी का पाट 3. पहले से बिछा हुआ संस्तारक ।
9. प्रतिमाधारी साधु, जिस स्थान में है, वहाँ स्त्री आदि आवे, तो भय के मारे बाहर निकले नहीं । कोई जबरदस्ती हाथ पकड़ कर निकाले, तो ईर्यासमिति सहित बाहर हो जावे तथा वहाँ आग लगे तो भी भय से बाहर आवे नहीं, कोई बाहर निकाले, तो ईर्यासमिति पूर्वक बाहर निकल जावे ।
10. प्रतिमाधारी साधु के पाँव में काँटा लग जाय या आँख में काँटा (धूल, तृण आदि) गिर जावे, तो साधु उसे अपने हाथों से निकाले नहीं ।
11. प्रतिमाधारी साधु, सूर्योदय से सूर्य के अस्त होने तक विहार करे, बाद मे एक कदम भी नहीं चले ।
12. प्रतिमाधारी साधु को सचित्त पृथ्वी पर बैठना या सोना कल्पता नहीं तथा सचित्त रज लगे हुए पैरों से गृहस्थ के यहाँ गोचरी पर जाना भी नहीं कल्पता ।
13. प्रतिमाधारी साधु, प्रासुक जल से भी हाथ-पाँव और मुँह आदि धोवे नहीं, अशुचि का लेप दूर करने के लिए धोना कल्पता है।
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