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3. आपुच्छणा-खुद के काम होवे, तो गुरु से पूछे ।
4. पडिपुच्छणा-अन्य मुनियों के काम होवे, तो गुरु से बारबार पूछे ।
5. छंदणा - अपनी लाई हुई वस्तु बड़ों को ग्रहण करने को
कहे ।
6. इच्छाकार-गुरु से प्रार्थना करे कि अगर आपकी इच्छा होवे, तो मुझे सूत्रार्थ - ज्ञान दान दीजिए ।
7. मिच्छाकार- लगे हुए पापकर्मों का गुरु के सामने मिथ्या दुष्कृत कहे।
8. तहक्कार-गुरु के वचन को प्रमाण मानकर - स्वीकार करे अथवा 'आप जैसा कहते हैं वैसा ही है' ऐसा कहे ।
9. अब्भुट्ठाणं- गुरु तथा बड़े मुनिवर आवे तब खड़ा होवे, सात-आठ कदम सामने जाकर सत्कार करे, वापिस जावे तब उतना ही पहुँचाने जावे ।
10. उपसंपया - गुरुजनों से सूत्रार्थ - ज्ञान लक्ष्मी पाने के लिए सदैव सावधान रहे और गुरु के पास में रहे ।
(11) ग्यारहवें बोले - श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ - 1. दर्शन प्रतिमा-शुद्ध, अतिचार रहित समकित धर्म पाले । यह प्रतिमा एक मास की है।
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