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________________ 2. क्षयोपशम समकिती में 2 4 15 7 6 3. वेदक समकिती में 2 4 11147 6 4. उपशम समकिती में 2 8 13157 6 5. क्षायिक समकिती में 2 11 159 6 अल्पबहुत्व-सबसे थोड़े वेदक समकिती (क्षायिक वेदक), उनसे सास्वादन-समकिती असंख्यात गुणा, उनसे उपशम-समकिती संख्यात गुण, उनसे क्षयोपशम-समकिती असंख्य गुण, उनसे क्षायिकसमकिती अनन्त गुण और उनसे समुच्चय समकिती विशेषाधिक । ज्ञान द्वार जीव गुणस्थान योग उपयोग लेश्या 1. सज्ञानी में 6 12 159 6 2. मति-श्रुतज्ञानी में 6 10 15 7 6 3. अवधिज्ञानी में 2 10 15 7 6 4. मन:पर्यायज्ञानी में 1 7 14 7 6 14. वेदक समकिती में 11 योग होते हैं-4 मन के, 4 वचन के, औदारिक, औदारिक मिश्र और वैक्रिय मिश्र। 15. कर्मग्रन्थ भाग 4 गाथा 26 में भी उपशम सम्यक्त्व में 13 योग (आहारक व आहारक मिश्र को छोड़कर कहे हैं। 16. उपशम समकिती से मिश्रदृष्टि असंख्यात गुणा होते हैं, उनसे क्षयोपशम समकिती असंख्यात गुण हैं। इसी प्रकार समुच्चय समकिती से मिथ्यादृष्टि अनन्त गुणा हैं। (समकित का द्वार होने से ये दो बोल नहीं दिये हैं, लेकिन जानकारी की दृष्टि से दिये जा रहे हैं।)
SR No.034370
Book TitleRatnastok Mnjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2016
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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