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________________ ज्ञातव्य (1) स्थिति द्वार संबंधी अन्तर्मुहूर्त की आयुष्य वाला पर्याप्त तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय, देवताओं में उत्पन्न हो सकता है, इसलिए भव्य द्रव्य देव की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की बतलायी है। तीन पल्योपम की उत्कृष्ट स्थिति देवकुरु-उत्तरकुरु के युगलिक तथा स्थलचर युगलिक तिर्यञ्च की अपेक्षा से समझनी चाहिए। कोई संख्यात वर्ष की आयु वाला कर्मभूमिज सन्नी पर्याप्तक मनुष्य अन्तर्मुहूर्त्त आयुष्य बाकी रहे तब संयम अंगीकार करें, इसकी अपेक्षा से धर्म देव की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त कही है। कोई संख्यात वर्ष की आयु वाला कर्मभूमिज सन्नी पर्याप्तक मनुष्य देशोन करोड़ पूर्व वर्ष तक चारित्र (संयम) का पालन करें, इस अपेक्षा से उत्कृष्ट स्थिति देशोन (कुछ कम ) करोड़ पूर्व वर्ष की बतलायी है। यह उत्कृष्ट स्थिति तभी संभव है जब एक करोड़ पूर्व वर्ष की स्थिति वाला मनुष्य 9 वर्ष की आयु में संयम अंगीकार कर लें। धर्मदेव की स्थिति साधुपने की अपेक्षा से बतलाई है, जबकि शेष चार देवों की स्थिति यावज्जीवन की बतलाई है। (2) संचिट्ठणकाल द्वार संबंधी कोई धर्मदेव (साधु) जिसे साधुपना स्वीकार किये असंख्यात समयों का मध्यम अन्तर्मुहूर्त्त बीत जाये, उसके बाद परिणामों 29
SR No.034370
Book TitleRatnastok Mnjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2016
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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