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6. जो जीव जितने अधिक सुखी होते हैं, उनकी श्वासोच्छ्वास क्रिया उत्तरोत्तर देरी से चलती है अर्थात् उनका श्वासोच्छ्वास
और विरहकाल अधिक-अधिक होता है, क्योंकि श्वासोच्छ्वास क्रिया अपने आप में दुःख रूप होती है। यह बात अपने अनुभव
से भी सिद्ध है तथा शास्त्र भी इस बात का समर्थन करते हैं। 7. श्वासोच्छ्वास मात्र घ्राणेन्द्रिय (नासिका) से ही नहीं लिया जाता
वरन् स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय (मुख) और घ्राणेन्द्रिय इन तीनों से लिया जाता है। 8. एकेन्द्रिय जीव स्पर्शनेन्द्रिय से ही श्वास लेते तथा छोड़ते हैं।
बेइन्द्रिय जीव स्पर्शन तथा मुख से श्वास लेते-छोड़ते हैं। तेइन्द्रिय, चौरेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय जीव तीनों इन्द्रियों से (स्पर्शन, मुख तथा घ्राण) श्वास लेते तथा छोड़ते हैं। 9. श्वासोच्छ्वास की प्रक्रिया हर गति, जाति आदि के जीवों में अलग-अलग प्रकार से होती है।
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