SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशकीय सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल की स्थापना विक्रम सम्वत् 2002 (ईस्वी सन् 1945) में हुई थी, तब से यह संस्था सत्साहित्य एवं 'जिनवाणी हिन्दी मासिक पत्रिका' का प्रकाशन कर सम्यग्ज्ञान के प्रचार-प्रसार में महती भूमिका का निर्वाह कर रही है। जैनदर्शन में मोक्ष-प्राप्ति के लिए जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध एवं मोक्ष इन नौ तत्त्वों का ज्ञान आवश्यक माना गया है। जीव-अजीव तत्त्व पर जैन जगत् के विद्वत्मनीषी श्री कन्हैयालालजी लोढ़ा की पुस्तक पहले प्रकाशित हुई थी। उसी क्रम में 'पुण्य-पाप तत्त्व' के विवेचन पर यह पुस्तक प्रकाशित करते हुए हमें प्रमोद का अनुभव हो रहा है। इस पुस्तक के प्रथम संस्करण का प्रकाशन प्राकृत भारती अकादमी की अनुमति से द्वितीय संस्करण का कुछ संशोधन करने के साथ अब तृतीय संस्करण का प्रकाशन किया जा रहा है। प्रस्तुत 'पुण्य-पाप तत्त्व' पुस्तक जैनागम एवं कर्मसिद्धांत को आधार मानकर पुण्य एवं पाप का विशद् विवेचन करती है तथा इन तत्त्वों के संदर्भ में प्रचलित भ्रान्तियों का निराकरण कर तत्त्व जिज्ञासुओं के चिंतन को नूतन प्रकाश से आलोकित करती है। पुस्तक में पाप को हेय एवं पुण्य को प्रमाणोपेत युक्तियों से उपादेय सिद्ध किया गया है। पुण्य तत्त्व को लोढ़ा साहब ने विशुद्धि के रूप में तथा पाप तत्त्व को संक्लेश के रूप में व्याख्यायित किया है।
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy