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________________ XXXI भूमिका पुण्य और पाप (शुभ और अशुभ) की कसौटी शुभाशुभता या पुण्य-पाप के निर्णय के दो आधार हो सकते हैं1. कर्म का बाह्य स्वरूप अर्थात् समाज पर उसका प्रभाव और 2. कर्ता का अभिप्राय। इन दोनों में कौन-सा आधार यथार्थ है, यह विवाद का विषय रहा है। गीता और बौद्ध दर्शन में कर्ता के अभिप्राय को ही कृत्यों की शुभाशुभता का सच्चा आधार माना गया है। गीता स्पष्ट रूप से कहती है कि- 'जिसमें कर्तृत्व भाव नहीं है, जिसकी बुद्धि निर्लिप्त है, वह कर्त्तव्यभाव से इन सब लोगों को मार डाले तो भी यह समझना चाहिये कि उसने न तो किसी को मारा है और न वह उस कर्म से बंधन को प्राप्त करता है।'10 धम्मपद में बुद्ध-वचन भी ऐसा ही है कि नैष्कर्म्य स्थिति को प्राप्त ब्राह्मण माता-पिता को, दो क्षत्रिय राजाओं को एवं प्रजा सहित राष्ट्र को मारकर भी निष्पाप होकर जाता है।" बौद्धदर्शन में कर्ता के अभिप्राय को ही पुण्य-पाप का आधार माना गया है। इसका प्रमाण सूत्रकृतांगसूत्र के आर्द्रक संवाद में भी मिलता है। जहाँ तक जैन मान्यता का प्रश्न है, विद्वानों के अनुसार उसमें भी कर्ता के अभिप्राय को ही कर्म की शुभाशुभता का आधार माना गया है। मुनि सुशीलकुमारजी लिखते हैं कि-शुभ-अशुभ कर्म के बंध का मुख्य आधार मनोवृत्तियाँ ही हैं। एक डॉक्टर किसी को पीड़ा पहुँचाने के लिए उसका व्रण चीरता है। उससे चाहे रोगी को लाभ ही हो जाये, परंतु डॉक्टर तो पाप-कर्म के बंधन का ही भागी होगा। इसके विपरीत वही डॉक्टर करुणा से प्रेरित होकर व्रण चीरता है और कदाचित् उससे रोगी की मृत्यु हो जाती है, तो भी डॉक्टर अपनी शुभ-भावना के कारण पुण्य का बंध करता है।'' पण्डित सुखलालजी भी यही कहते हैं, पुण्यबंध और पाप-बंध की सच्ची कसौटी केवल ऊपरी क्रिया नहीं है, किंतु उसकी यथार्थ कसौटी कर्ता का आशय ही है। जैनदर्शन के अनुसार जिस व्यक्ति में संसार के सभी प्राणियों के प्रति आत्मवत् दृष्टि है, वही
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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