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________________ XXX पुण्य-पाप तत्त्व एवं क्रियाओं की ओर प्रेरित करते हैं तथा आध्यात्मिक विकास हेतु मानसिक एवं भौतिक अनुकूलताओं के संयोग प्रस्तुत कर देते हैं। आत्मा की वे मनोदशाएँ एवं क्रियाएँ पुण्य कहलाती हैं जो शुभ पुद्गल परमाणु को आकर्षित करती हैं। साथ ही दूसरी ओर वे पुद्गल-परमाणु जो इन शुभ वृत्तियों एवं क्रियाओं को प्रेरित करते हैं और अपने प्रभाव से आरोग्य, सम्यक् श्रद्धा, ज्ञान एवं संयम के अवसर उपस्थित करते हैं, पुण्य कहे जाते हैं। शुभ मनोवृत्तियाँ भाव पुण्य हैं और शुभ पुद्गल-परमाणु द्रव्य पुण्य हैं। पुण्य या कुशल कर्मों का वर्गीकरण भगवती सूत्र में अनुकम्पा, सेवा, परोपकार आदि शुभ प्रवृत्तियों को पुण्योपार्जन का कारण कहा गया है। स्थानांग सूत्र में नौ प्रकार के पुण्य निरूपित हैं।' 1. अन्नपुण्य-भोजनादि देकर क्षुधार्त की क्षुधा-निवृत्ति करना। 2. पानपुण्य-तृषा (प्यास) से पीड़ित व्यक्ति को पानी पिलाना। 3. लयनपुण्य-निवास के लिए स्थान देना धर्मशालाएँ आदि बनवाना। शयनपुण्य-शय्या, बिछौना आदि देना। वस्त्रपुण्य-वस्त्र का दान देना। ___ मनपुण्य-मन से शुभ विचार करना अर्थात् जगत् के मंगल की शुभकामना करना। वचनपुण्य-प्रशस्त एवं संतोष देने वाली वाणी का प्रयोग करना। 8. कायपुण्य-रोगी, दु:खित एवं पूज्य जनों की सेवा करना। नमस्कार पुण्य-गुरुजनों के प्रति आदर प्रकट करने के लिए उनका अभिवादन करना। 5.
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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