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________________ प्राक्कथन वर्तमान में कतिपय विद्वान् दया, दान, करुणा, अनुकम्पा, वात्सल्य, वैयावृत्त्य (सेवा) आदि सद्प्रवृत्तियों को तथा नम्रता, मृदुता, मित्रता, सरलता, सज्जनता, मानवता, उदारता आदि सद्गुणों को धर्म नहीं मानते हैं, पुण्य मानते हैं। प्रकारांतर से कहें तो सद्गुणों एवं सद्प्रवृत्तियों को हेय व त्याज्य मानते हैं। इस भ्रान्ति का मुख्य कारण पुण्य तत्त्व, पुण्यास्रव, पुण्य का अनुभाग एवं पुण्य कर्म के स्थिति बंध आदि के अंतर के मर्म पर ध्यान नहीं देना है। इस पुस्तक में इनका व इससे संबंधित अन्य विषयों का विवेचन कर वास्तविकता का अनुसंधान करने का प्रयास किया गया है। इस पुस्तक का विषय पुण्य-पाप दोनों का विवेचन करना रहा है। परंतु पाप के स्वरूप, परिभाषा, लक्षण आदि में मतभेद नगण्य होने से पाप का विवेचन सामान्य व संक्षेप में किया गया है जबकि पुण्य के विषय में अत्यधिक मतभेद एवं परस्पर विरोधी मान्यताएँ होने से अनेक प्रश्न एवं जिज्ञासाएँ उठती हैं। इसलिए पुण्य का विविध विवक्षाओं एवं विस्तार से विवेचन किया गया है। यह विवेचन उत्तराध्ययन सूत्र, भगवती सूत्र आदि आगम, षट्खंडागम और उसकी टीका धवला-महाधवला, कषायपाहुड और उसकी टीका जयधवला, कर्मग्रन्थ, कम्मपयडि, पंचसंग्रह, गोम्मटसार कर्मकाण्ड आदि कर्म-सिद्धांत के ग्रन्थों के प्रमाणों को प्रस्तुत करते हुए किया है। लेखन के पूर्व विद्वानों से विचार-विमर्श कर, पूर्वापर विरोधों का निरसन करने का पूरा प्रयास किया है।
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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