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________________ 92 ----- पुण्य-पाप तत्त्व यह है कि लोभ कषाय की कमी शुभ आयु में वृद्धि की हेतु है, यथा-शुभ आयु कर्म मनुष्य-देव-आयु के बंध के हेतु हैं। गोयमा! पगइभद्दयाए पगइविणीययाए, साणुक्कोसणयाए, अमच्छ रियाए मणुस्साउयकम्मा जाव पओगबंधे।। गोयमा! सरागसंजमेणं, संजमासंजमेणं, बालतवोकम्मेणं, अकामणिज्जराए, देवाउयकम्मासरीर जाव पओगबंधे।। ____ -भगवती सूत्र शतक 8, उद्देशक 9, सूत्र 82-83 अल्पारम्भपरिग्रहत्वं स्वभावमार्दवार्जवं च मानुषस्य।।18।। नि:शीलव्रतत्वं च सर्वेषाम्।।19॥ सरागसंयमसंयमासंयमाकामनिर्जराबालतपांसि देवस्य।।20।। -तत्त्वार्थ सूत्र, अध्ययन 6 अर्थात् प्रकृति की भद्रता, विनीतता, मृदुता, दयालुता, अमत्सर तथा आरंभ, परिग्रह की अल्पता से मनुष्य आयु का बंध होता है। सरागसंयम, संयमासंयम (देश विरति), बालतप और अकाम निर्जरा से देवायु का बंध होता है। मनुष्य और देव आयु में मुख्य हेतु आरंभ परिग्रह के त्याग एवं संयम हैं। सराग संयम, संयमासंयम भी आरंभ-परिग्रह के त्याग के सूचक हैं। अभिप्राय यह है कि लोभ-तृष्णा के त्याग में शुभ आयु का बंध होता है। अशुभ आयु कर्म का बंध अशुभ आयु कर्म में नरकायु का बंध होता है, जिसके हेतु के विषय में कहा गया है-गोयमा! महारंभयाए, महापरिग्गहाए, कुणिमाहारेणं, पंचिंदियवहेणं, नेरड्याउयकम्मासरीरप्पओगनामाए कम्मस्स उदएणं नेरइयकम्मा सरीर-जाव पओगबंधे।। -भगवती सूत्र शतक 8, उद्दे. 9 बह्वारम्भपरिग्रहत्वं च नारकस्यायुषः।। -तत्त्वार्थ सूत्र अध्ययन 6, सूत्र 16
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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