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________________ वनस्पति में संवेदनशीलता है कि वनस्पतिकाय के जीव उत्पन्न होते ही सर्वप्रथम आहार करते हैं। आहार से शरीर का गठन व वर्धन होता है। शरीर के गठन से इन्द्रिय का प्रादुर्भाव होता है जिससे प्राणी में संवेदन-स्पंदन आदि क्रियाएँ होती हैं। पश्चात् जीवनक्रम व्यवस्थित चलाये रखने के लिए श्वासोच्छ्वास क्रिया प्रारंभ होती है। इस प्रकार पर्याप्ति के कथन में सचेतनता के साथ आहार पर्याप्ति में भोजन, शरीर पर्याप्ति में शारीरिक गठन एवं वर्धन, इन्द्रियपर्याप्ति में स्पंदनशीलता तथा श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति में श्वसन क्रिया रूप में विज्ञान जगत् में कथित सजीवता के 6 लक्षण समाहित हो जाते हैं। जैन आगमों में वनस्पति में चार प्राण स्पर्शेन्द्रिय, काय, श्वासोच्छ्वास और आयुष्य कहे हैं। इसमें कथित आयुष्य प्राण की अंतिम स्थिति ही विज्ञान में कथित ‘मरण' है। भगवतीसूत्र शतक 19 उद्देशक 3 सूत्र 8 में वनस्पति गृहीत आहार के निस्सार पदार्थ का विसर्जन करती है, यह स्पष्ट उल्लेख है। प्रजनन, मैथुनसंज्ञा का व अनुकूलन की प्रवृत्ति, मति-श्रुत ज्ञान की द्योतक है। जैनागम वनस्पति में मैथुन-संज्ञा और मति-श्रुत ज्ञान मानते हैं। इन सबका विशेष वर्णन आगे प्रसंगानुसार प्रकरणों में मिलेगा। आशय यह है कि जैनागमों में विज्ञान जगत् में कथित वनस्पति की सजीवता के सभी लक्षणों का विशद् वर्णन मिलता है। उपर्युक्त वनस्पति विषयक 'जैनागमों में आए सूत्रों' एवं 'वैज्ञानिक विवेचन' के तुलनात्मक अध्ययन से यह स्पष्ट प्रकट हो जाता है कि वनस्पति को सजीव सिद्ध करने वाले जो तथ्य विज्ञान जगत् में अन्वेषणों से अभी सामने आए हैं, उनके बीज जैन-शास्त्रों में पूर्वत: ही विद्यमान है। जैनागमकार उनसे सहस्रों वर्ष पूर्व ही परिचित थे।
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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