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________________ जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य फेफड़ों, आंतों आदि द्वारा होती है। पौधों में यह क्रिया पत्तियों द्वारा श्वसन, स्वेदन व झड़ने के रूप में होती है। (10) मृत्यु (Death)-जीवित पदार्थ कुछ समय तक तीव्र वृद्धि करते हैं। फिर वृद्धि धीमी पड़ जाती या रुक जाती है और अंत में वे मर जाते हैं। यहाँ मर जाने का अर्थ है जीवन-क्रियाओं का सदा के लिए बंद हो जाना। जीवों की अधिकतम आयु निश्चित होती है। वनस्पति भी जन्म लेती, बढ़ती व जीवन-क्रिया बंद हो जाने पर मुरझाकर मर जाती है। सजीवता-निर्देशक उपर्युक्त लक्षण-सचेतनता, स्पंदनशीलता शरीर-निर्माण, भोजन, श्वसन, प्रजनन, अनुकूलन, विसर्जन और मरण केवल जीवधारियों में ही पाये जाते हैं। निर्जीव पदार्थों में इनमें से एक भी नहीं पाया जाता है। इनमें केवल एक गुण या लक्षण की उपलब्धि या अभिव्यक्ति ही सजीवता का ज्वलन्त प्रमाण होता है। उपर्युक्त प्रमाणों से यह प्रत्यक्ष सिद्ध है कि वनस्पति में सजीवता-प्रदर्शक उक्त सभी लक्षण या गुण विद्यमान हैं। अत: वनस्पति की सजीवता में संदेह को स्थान नहीं रह जाता है। जैनदर्शन की समानता-जैन आगमों में वनस्पति विषयक विभिन्न वर्गीकरणों द्वारा जो वर्णन आता है उसमें और उपर्युक्त वैज्ञानिक विवेचन में पर्याप्त समानता है, यथा-वनस्पति में चार पर्याप्तियाँ कही गई है तेसि णं भंते! जीवाणं कई पज्जत्तीओ पण्णत्ताओ? गोयमा! चत्तारि पज्जत्तीओ, पण्णत्ताओ, तं जहा-आहारपज्जत्ती, सरीरपज्जत्ती, इंदियपज्जत्ती, आणपाणुपज्जत्ती। -जीवाभिगम सूत्र, प्रथम प्रतिपत्ति अर्थात् पृथ्वीकाय के समान वनस्पतिकाय जीवों में भी आहार, शरीर, इन्द्रिय और श्वासोच्छ्वास ये चार पर्याप्तियाँ होती हैं। अभिप्राय यह
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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