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________________ 56 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य जिस प्रकार जुगनुओं (आगियाओं), कुछ प्रकार की मछलियों व अन्य प्राणियों के शरीर में प्रकाश होता है; उसी प्रकार अग्निकाय के जीवों के शरीर में भी प्रकाश होता है। लोगों की सामान्य धारणा है कि उष्णता में किसी प्राणी का जीवित रहना संभव नहीं है। परंतु यह धारणा धारणा मात्र ही है, तथ्य नहीं। तथ्य तो यह है कि किसी प्राणी का जीवित रहना उसकी प्रकृति के अनुकूल वातावरण पर निर्भर करता है। उदाहरणार्थ, उष्ण कटिबंध के निवासी दक्षिण भारतीय व्यक्ति को टुंड्रा के बर्फीले स्थान पर रखा जाय तो वह जीवित नहीं रह सकता जबकि वहाँ के निवासी एस्किमो अपना सम्पूर्ण जीवन बर्फ से बने घरों में सकुशल व्यतीत करते हैं। दक्षिणी भारतीयों को जितनी असह्य शीत प्रतीत होती है उसकी शतांश शीत भी एस्किमो लोगों को प्रतीत नहीं होती है। वस्तुत: उष्णता-शीतलता की सहनशीलता प्राणी की प्रकृति पर निर्भर करती है। तीन बीकर लिए जाएँ-एक में ठण्डा, दूसरे में गुनगुना और तीसरे में गर्म जल भरा जाय। फिर उष्णता (तापमान) जानने के लिए उन्हें किसी हाथ से स्पर्श किया जाय तो सही अनुभूति होती है। परन्तु यदि दाएँ हाथ को गर्म जल में तथा बायें हाथ को ठण्डे जल में डुबो लिया जाय और फिर दोनों हाथ एक साथ गुनगुने जल में डुबोये जायें तो दायें हाथ को वह जल ठण्डा तथा बायें हाथ को गर्म अनुभव होगा। एक ही समय, एक ही व्यक्ति को, एक ही जल के दो प्रकार के तापमान अनुभव होना यह सिद्ध करता है कि उष्णता-शीतलता की अनुभूति प्राणी के शरीर की प्रकृति से संबंध रखती है। अन्य उदाहरण लें-कोई वस्तु साधारण व्यक्ति को जितनी उष्ण प्रतीत होती है उतनी उष्ण ज्वर-ग्रस्त व्यक्ति को
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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