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________________ पुद्गल द्रव्य 231 छत की ओर देखें तो ऐसा लगेगा कि लैम्प का रंग बदल कर नीला, हरा हो गया है। इसका कारण यह है कि जब हमारी दृष्टि अधिक समय तक लाल प्रकाश पर टिकी रहती है तो आँखों की लाल रंग देखने की शक्ति थक जाती है। फिर सफेद दीवार पर देखने से लाल रंग के अतिरिक्त अन्य सब रंग दिखाई पड़ते हैं। यही नहीं आँखें अनुभूति में संतुलन भी बनाये रखती हैं। यही कारण है कि किसी बड़े लाल कागज को सलेटी रंग के कागज के बराबर में रख दिया जाय तो सलेटी रंग के कागज पर हरे रंग की झलक दिखाई देगी। वर्ण से प्रकृति भी प्रभावित - जैनदर्शन में यह भी माना गया है कि पुद्गल के गुणों से प्राणी प्रभावित होता है। पुद्गल (पदार्थ) के वर्ण में भी विशेषता देखी जाती है । वर्ण या रंग केवल अनुभूति को ही नहीं, प्रकृति (भावों) को भी प्रभावित करते हैं। काले रंग को देखकर मन में भय की भावना उत्पन्न होती है। लाल और नारंगी रंग से मन उल्लासित होता है। हरे रंग में शामक गुण होने के कारण वह हिस्टीरिया के रोगों के लिए लाभदायक समझा जाता है। बम के धमाके आदि की भयानक आवाज से परेशान व्यक्ति को भी हरा रंग लाभप्रद सिद्ध होता है । रेलगाड़ियों के सिगनल के लाल-हरे रंग प्रयुक्त करने के पीछे भी यही तथ्य है। लाल रंग खतरे व भय का सूचक होता है और हरा रंग निर्भयता व शांति का द्योतक होता है। एक रंग हर व्यक्ति पर एक-सा ही प्रभाव डाले यह आवश्यक नहीं है। लाल, गुलाबी, नारंगी, श्वेत रंग भले ही सामान्यतः अच्छे लगते हों लेकिन निरंतर इनके देखने से चिढ़ व खीज उत्पन्न हो जाती है। यदि किसी कमरे में सब दीवारों, दरवाजों, खिड़कियों पर केवल सफेद रंग ही पुता हो तो उसे देखकर कोई व्यक्ति ऊबकर एकदम बाहर आना चाहता है । यदि उसे किसी कारणवश वहीं रहना पड़े
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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